Book Title: Parshvanath Charitam
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 318
________________ * प्रयोविंशतितम सर्ग [ ३०५ प्रग्नोन्द्रमुकुटोभूतहिना तद्वपुः परम् । तरक्षणं प्राम पर्यायान्तर गन्धोपलक्षितम् ।।६१।। ततो भस्म समादाय पञ्चकल्याणभागिनः । भवामोऽत्र वर्ष ह्येवमित्युक्त्वा चिरकालतः । ६२।। ललाटे मस्तके कण्ठे हृदये स भुजद्वये । संस्पृश्य भक्तिभारेण प्रापुः पुण्यं महत्सुराः ।। ६३।। सकलत्राः पुनः शका धर्मरागरसोरकटाः । प्रानन्दनाटकं संपादयामासुमंनोहरम् ।।६४।। एवं तदन्त्यकल्याणपूजन विधिवत्सुराः । विधायोपाज्यं सत्पुण्यं जग्मुः स्वस्थ समाश्रयम् ६५॥ मालिनी इति विविध सुखं यो मत्यलोके च नाके निरुपममतिसारं नि:प्रपञ्चं प्रभुक्त्या । सकलचरणयोगाप्राप मुक्त्यङ्गनाज-ममलमचलसौग्न्यं तरसुरणाप्त्यं तमीडे ।। ६६ ।। शार्दूलविक्रीडिसम् यो काल्पपि निहत्य मोहमदनाक्षाराम्बहून धीरधी धेराग्यासिबलेन कर्मजनित त्यक्त्वा कुटुम्ब परम् । के द्वारा प्रणाम किया ॥६०॥ पश्चात् सुगन्ध से सहित उनका यह शरीर अग्निकुमार देवों के इन्द्र के मुकुट से उत्पन्न अग्नि के द्वारा उसी क्षण अन्य पर्याय को प्राप्त हो गयाभस्म हो गया ॥६॥ तवनम्तर भस्म को लेकर हम भी इसी तरह इस जगत् में पञ्चकल्याणकों के भागी होवे ऐसा कह कर उन देवों ने चिरकाल तक उस भस्म को ललाट, मस्तक, कष्ट, हृदय, और दोनों भुजारों में भक्तिभार से लगाकर महान पुण्य को प्राप्त किया ॥६२-६३। पश्चात् देवाङ्गलानों से सहित तथा धर्मराग के रस से परिपूर्ण इन्द्रों ने प्रानन्द नाम का मनोहर नाटक किया ।।६४।। इस प्रकार देव विधिपूर्वक अन्तिम कल्याणक की पूजा कर तथा उत्तम पुण्य का उपार्जन कर अपने अपने स्थानों पर चले गये ।।६।। इस प्रकार जिन्होंने मनुष्य लोक तथा स्वर्ग लोक में नाना प्रकार के अनुपम, अत्यन्त श्रेष्ठ वास्तविक सुख का उपभोग कर सकलचारित्र के योग से मुक्तिरूपी प्रङ्गना से उत्पन्न निर्मल और अविनाशी सुख प्राप्त किया था उन पार्श्वनाथ भगवान को मैं उस सुख की प्राप्ति के लिये नमस्कार करता हूं ॥६६॥ जिन्होंने बाल्य अवस्था में ही स्थिर बुद्धि तथा वैराग्यरूपी तलवार के बल से मोह काम तथा इन्द्रियरूपी अनेक शत्रुओं को नष्ट कर तथा कर्मजनित उत्कृष्ट कुटुम्ब और अद्भुत भोगों से श्रेष्ठ समस्त राज्य का त्याग कर मुक्तिरूपी स्त्री की माता स्वरूप उत्तम दीक्षा को ग्रहण किया था वे पापर्वनाथ भगवान् मोक्ष प्राप्ति पर्यंत 'मैं बाल्यावस्था में भी तप कर सक” इसके लिये सहायक हो

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