Book Title: Parshvanath Charitam
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 325
________________ • श्री पार्श्वनाथ चरित . स्वागता अक्षरस्यरसुसन्धिसुमात्रादि-च्युतं यदपि किञ्चिदपीह । भानहीनचलचित्तप्रमादासक्षमस्व जिनवारिण समस्तम् ।। १३ ।। मालिनी अवगमजलधिः श्रीपार्श्वनाथस्य दिव्यं, सकलविशदकीत: प्रादुरासोन्मुनीन्दात् । यदिह वरचरित्र तद्धि दक्षः प्रगन्य, जति सुननसेव्यं जैनघोऽस्ति यावत् ।। १४ ।। ___ शार्दूलविक्रीडितम् सर्व तीर्थकरा महातिशयिन : सिद्धा हि कर्मातिगा-- दिव्याष्टा तसद्गुणश्च सहिताः श्रीसाधवाच त्रिधा । शुक्लध्यानसुयोगसाधनपरा विद्याम्बुधेः पारगा ये हे विश्वगुणाकराश्व शिवदं कुर्वन्तु मे मङ्गलम् ।।१५।। स्रग्धरा विश्वाच्या विश्ववन्याः सकालवृषघरा मुक्तिकान्ताप्रसक्ता-- हन्तारः कर्मशत्रून् सुगुणजलषयो माप्यरूपेण नित्यम् । - uAg अन्य जीवों के हित के लिये निश्चय से इसका कथन किया है ॥१२॥ मैंने इस प्रन्थ में ज्ञान की हीनता, चित्त को चञ्चलता तथा प्रमाद से जो कुछ भी अक्षर स्वर सग्धि तथा मात्रा प्रावि की त्रुटि को हो हे जिनवाणी माता ! उस सबको क्षमा करो ॥६३।। पारवंनाथ भगवान का जो यह दिव्य तथा उत्कृष्ट चरित्र सकल कोति मुनिराज से प्रादुत हमा है वह ज्ञान का सागर है तथा चतुर मनुष्यों के द्वारा प्रशंसनीय है । सत्पुरुषों के द्वारा सेवित-पठन पाठन में लाया जाने वाला यह अन्य जब तक जैन धर्म है तब तक जयवन्त प्रवर्ते ॥४॥ महान प्रतिपायों से सहित समस्त तीर्थङ्कर, दिव्य तथा प्राश्चर्यकारी पाठ गुणों से सहित कर्मातीत सिद्ध परमेष्ठी तथा प्राचार्य उपाध्याय और साधु के मेह से तीन प्रकार के वे साधु परमेष्ठी जो शुक्लध्यान . का सुयोग सिद्ध करने में तत्पर है, विधा रूपी समुद्र के पारगामी हैं तथा समस्त गुणों की खान स्वरूप है मेरे लिये मोक्ष बायक प्रगल प्रदान करें ।।५॥ जो सबके द्वारा पूज्य हैं, इन्दनीय है, समस्त धर्म को धारण करने वाले हैं, उत्तम गुणों के सागर है पोर जाप्यरूप से मध्यजीवों के द्वारा निरन्तर अाराधनीय हैं ऐसे मोक्ष

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