Book Title: Parshvanath Charitam
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 322
________________ | ● त्रयोविंशतितम स T सिंहो नारक एव घोरनरके धूमप्रभायेऽप्यनु भ्रान्त्वा भूरिभवान्कुदुःखकलितान्भूपो महीपालकः । लस्मात्संवर एवं दुष्टहृदयरे जातोऽति वैरादिह ज्ञात्वेतोह विदो न वैरमशुभं प्रारणात्यये कुर्वते ॥७६ सान्त्येतीह जिनेश्वरोऽतिबा सौख्यं नृनाकोद्भवं rasat प्राप सुनित्यमुक्तिनियां कोपात्कुदुःखं परम् । संप्राप्तः कमठो दुरन्तमनिशं तिर्यग्भवं श्वभ्रजं मस्तीह जना निहत्य निखिलं कोप भजष्यं क्षमाम् ॥१६० एवं श्रीजिनपुङ्गवोऽत्र च मया सवन्दित: मंस्तो नित्यं तत्सुचरित्रसाररचनाव्याजेन योऽनेकधा । [ ३०६ afe foreमातिममृति दु:करणां च क्षयं दुःखम्यापि शिवं स्वकीयविभवं दद्यात्स में धरताम् ॥८१॥ वसन्ततिलका शेषा हि ये जिनवरा जितमोहल्ला, ज्ञानार्क दिव्य किरणे रवभास्य लोकम् । प्रापुः सुमुक्तिवनितोद्भवसारसोम्यं तत्पादव जनान्यमाश्रयामि ॥२॥ नरक में नारकी हुआ, पश्चात् सिंह हुआ, फिर धूमप्रभ नामक भयंकर नरक में नारकी हुआ, पुनः कुत्सित दुःखों से युक्त अनेक भवों में भ्रमण कर महीपालक नामका राजा हुआ लखनन्तर तीव्र बॅर कारण इस जगत् में दुष्ट हृदय वाला संवर नामक देव हुआ। ऐसा जान कर ज्ञानी ओघ प्रारणविघात होने पर भी प्रशुभ बैर नहीं करते हैं ।।७८- ७६ ।। श्री पार्श्व जिनेन्द्र इस जगत् में क्षमा के द्वारा मनुष्य और देवगतिसम्बन्धी अनेक प्रकार के सुख प्राप्त कर प्रत्यन्त नित्य मुक्तिरूपी धनिता को प्राप्त हुए और क्रोध से कमठ तिर्यय और नरकगति सम्बन्धी बहुत भारी भयंकर दुःख को प्राप्त हुआ, ऐसा जान कर हे भव्यजन हो ! समस्त क्रोध को नष्ट कर क्षमा की आराधना करो ||८०|| इस प्रकार इस ग्रन्थ में मैंने उत्तम चरित की श्रेष्ठ रचना के बहाने जिनकी अनेक प्रकार से निरन्तर बन्दना और स्तुति की है वे श्री पार्श्व जिनेन्द्र मेरे लिये बोधि-रत्नत्रय. दिव्यसमाथि, उत्तम मरण, दुष्ट कर्मों का क्षय, दुःख का क्षय, मोक्ष, अपना विभव प्रौर धीरता प्रदान करें ||८१|| मोहरूपी मल्ल को जीतने वाले जो शेष जिनेन्द्र, ज्ञानरूपी सूर्य की किरणों से लोक को प्रकाशित कर सुमुक्तिरूपी बनिता से उत्पन्न होने वाले श्रेष्ठ सुख " को प्राप्त हुए हैं मैं उनके बररणरूपी कमलवन का श्राश्रय लेता है ।।६२।। जो अनेक प्रकार

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