Book Title: Parshvanath Charitam
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 319
________________ • श्री पार्वभावरित . राज्य बाद मुतमोगसारमखिलं पनाह दीक्षा परी मुक्तिस्त्रीजननी स मेऽस्तु तपसे बाल्येऽपि यावच्छिवम् ।।६७।। यो वीर्य प्रकट विधाय परमं घोरोपसर्गे कते दुष्टेनैव कुशवणा वरमहाध्यामैन शुक्लेन हि । इत्वा घातिचतुष्टयं शिवमरं व्यक्त व्यधार केवलं ज्ञानं प्रमराचितं स भगवान् दबास्वशक्ति मम ।।६।। योऽत्राज्ञानतमो घनं च मुषियामुछड़ा वाक्यांशुभि मोकालोकमशेषमेव विविध धर्म प्रकाश्य द्विषा । मुक्तेर्मागंमतीवगूढममलं दृग्ज्ञानवृत्तात्मक सनुसार स्वधिारमा तं नोमि तद् द्धये ॥६६ ।। बसन्ततिलका यन्नाममात्रजपनादरिदुष्टभूप-चौरग्रहभ्रमनिशाचरशाकिनीनाम् । दुाधिलि रिसर्पकुकर्मभाना शीघ्र नश्यति भयं समहं सदेडे ।।७।। यचिन्तनादखिलविघ्नचयं दुरन्तं धर्मादिकार्यविविधे कुनुपादिजातम् । नाशं प्रयाति खलु चात्र सुमङ्गलादी वन्दे तमेव शिरसा शिविघ्नहान्य ।।१।। | जिन्होंने दुष्ट खोटे शत्रु के द्वारा घोर उपसर्ग किये जाने पर उत्कृष्ट बीर्य को प्रकट कर तथा शुक्लष्यान नामक उत्कृष्ट महा ध्यान से चार धातिया कमों का क्षय कर मोक्ष प्राप्त कराने वाले, इन्द्र तथा मनुष्यों के द्वारा पूजित केवलज्ञान को व्यक्त किया था वे पार्श्वनाथ भगवान मेरे लिये अपनी शक्ति प्रदान करें ॥ ६ ॥ जिन्होंने बचनरूपी किरणों के द्वारा विद्वज्जनों के प्रज्ञानरूपी घोर अंधकार को नष्ट कर समस्त लोकालोक और गृहस्थ तथा मुनि के भेव से दो प्रकार के धर्म को प्रकाशित कर प्रत्येत गूढ, निर्मल सम्यग्दर्शन शान चारित्रात्मक तथा अनंत सुख के स्थान स्वरूप मोक्ष मार्ग को प्राप्त किया था में उन पाश्वनाथ भगवान को उस मोक्षमार्ग की वृद्धि के लिये अपने मस्तक से नमस्कार करता है॥६६॥ जिनके नाममात्र के जाप से शत्रु, दुष्ट राजा, चौर, ग्रह, भ्रम, निशाचर, शाकिनी, दुष्टरोग, अग्नि, सिंह, सर्प और कुकृत्य करमे वाले मनुष्यों का भय शीघ्र ही नष्ट हो जाता है उन पार्श्वनाथ भगवान की मैं सदा स्तुति करता है॥७॥ जिनका चितन करने से धर्मादि के विविध कार्यों में खोटे राजा मावि से होमे बाला कुःखदायक समस्त विघ्नों का समूह निश्चय से नाश को प्राप्त हो जाता है इस जगत

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