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• श्री पारबनाय धरित.
द्वाविंशतितमः सर्गः भगवन्तं जगन्नाथं सर्वशं संस्तुवे मुदा । दिव्यध्वनिमुषावृष्टया तपितत्रिजगज्जनम् ॥१॥ अथ वभ्रारिण सप्तैव पटलादियुतान्यपि । मसंस्यद्रोपदार्टीव मेर्वादीन् ज्योतिषोऽखिलाम् २१ पटलादियुतानस्वर्गान्कल्पातीतान् शिवालयम् । उत्सपिण्यवसपिण्यौ भोगभूमीतरारिसे ॥३॥ मायु.कायाधिभेदौविस्तरेणा खिलं जगत् ।दिव्येन बनिना देवः सोऽम्यवाद्भाव्यतृप्तये ॥४॥ सीपेशा पक्रिणां बादं चक्रिणा बलभूमृताम् । सर्वेषा च पुराणानि कल्याणानि सुखान्यपि ॥५॥ तवापुरङ्गवर्णादीन्वायर्योत्पत्यादिकागतीः । विविधाभ्युदयं सर्व व्याजहार स तीर्थराट् ।।६।। भविष्यम्चभवभूतं यत्सर्व द्रव्यगोचरम् । लोकालोकं सपर्यायं गणेशं प्रत्ययुषत् ।।७।। भ्ररदेश नवसदार नान कर्म मुसा ! परमासाद मा प्रापू{क्ता इव विषेर्गणाः ।। काललब्ध्या तदा केचित् प्रहत्य तद्वषोंऽशुभिः । मोहध्वान्त समासाद्य वैराग्यं सर्ववस्तुषु ॥६॥
जिन्होंने विध्यध्वनि रूप अमृत की वृष्टि द्वारा तीनों जगत् के जोषों को संतुष्ट कर दिया है, मो जगत के स्वामी है तथा सर्पज हैं उन पार्श्वनाथ भगवान को मैं हर्षपूर्वक स्तुति करता हूं ॥१॥
अथानन्तर उन पार्श्वनाथ जिनेन्द्र ने भव्यजीवों की तृप्ति के लिये पटल मादि से युक्त सातों नरक प्रसंख्यात द्वीप समुद्र, मेरु प्रादि पर्वत, संपूर्ण ज्योतिष्क वेब, पटल प्रादि से सहित स्वर्ग, कल्पातीत विमान-नव प्रेयक, नब अनुदिश, पांच अनुत्तर विमान, मोक्ष, भोगभूमि और कर्म भूमि से सहित उत्सपिगी अवपिणी काल, इस प्रकार समस्त जगत् का प्रायु तथा काय प्रादि के भेद समूहों का निर्देश करते हुए दिव्यध्वनि के द्वारा विस्तार से कथन किया ॥२-४॥ तीर्थाधिपति भगवान पार्श्वमाष ने समस्त तीर्थकर, चक्रवर्ती, अर्ध चक्रवर्ती, प्रौर बलभद्रों के पुराण, कल्याणक, सुख, प्रायु, शरीर के वर्ण प्रादि का, पार्यो की उत्पत्ति मावि का, गतियों का तथा नाना प्रकार के समस्त प्रभ्युदयों का वर्णन किया ॥५-६॥ द्रव्य सम्बन्धो जो परिणमन प्रागे होगा, अभी हो रहा है और पहले हो चुका है उस सबका तया पर्याय सहित लोकालोक का परिज्ञान गणधर को कराया ॥७॥ इस प्रकार तत्वों के सद्भाव को तथा समस्त प्रागम को हर्षपूर्वक सुनकर गणधर इस प्रकार परमालाव-उस्कृष्ट प्रानन्द को प्राप्त हुए मामों कर्मों से मुक्त ही हो गये हो ॥८॥
उस समय कालन्धि से कितने ही भव्य जीवों ने भगवान को विव्यध्वनि रूप किरणों के द्वारा मोहाधिकार को नष्ट कर समस्त बस्तुनों में वैराग्य प्राप्त किया तथा 1. भवतृप्तये सध्या ३. तत्व दाम म. ।