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• श्री पारवनाथ चरित . प्रष्टौ स्पर्शा रसाः पञ्च वर्णाः पञ्च गन्धौ द्विधा । इति विंशतिरस्यत्र गुणाः प्रोक्ता द्विधात्मका:।७।। शुशाणोर्ये गुणा: शुद्धा मता: स्वाभाविकाश्च ते । गुणा: स्कन्धेषु येऽशुद्धा विभावाल्या हि ते बुधः७ अणुस्कन्धविभेदेन पुद्गलस्य द्विधा थितिः । स्निग्धक्षमयाणूनां संघातः स्कन्ध उच्यते ।।७।। प्रणव: कार्यलिङ्गाः स्युरोककतयास्खिलाः ।निया व्याथि केनानित्याः पर्यायाधिकेन प.।७।। सूक्ष्मसूक्ष्मास्तथा सूक्ष्मः सूक्ष्मस्पूलाभिधा: परे । स्थूलसूक्ष्मात्मकाः स्थूलाः स्थूल म्यूलाश्च पुद्गला:० एकोऽणुः सूक्ष्मसूक्ष्मः स्याददृश्या नयन नेणाम् । सूक्ष्मास्तेऽपि मताः सद्भिर्ये कर्ममयपुद्गलाः । ८१।। रसनस्पर्शनप्राणोनये यान्ति पुद्गलाः ।ध्यक्तता ते समुद्दिष्टाः सूक्ष्मस्यूला जितागमे।।२।। स्यूलसूक्ष्मा जनशेयाश्छायाज्योत्स्नातपादयः । जलज्वालादयः स्थूला उच्यन्ते पुत्गला बुधः ।३। कारण वक्ष पुरुषों ने पुद्गल द्रव्य का निरूपण किया है। यह पुद्गल द्रव्य मूर्त है, अनेक प्रकार का है, सार्थक नाम वाला है और कमरूपी शरीर को करने वाला है ॥७॥ पाठ स्पर्श, पांच रस, दो गन्ध और पांच रूप इस प्रकार इसी पुद्गल के बीस गुण कहे गये हैं । पे गुरण शुद्ध और बगुड के भेद से दो प्रकार के होते हैं ॥७६।। शुद्ध परमाणु के जो गुरण है वे विद्वानों द्वारा भुट तथा स्वाभाविक माने गये हैं और स्कन्धों में जो गुण है वे प्रशुस तथा वैभाविक माने गले ७७और मद गुगल द्रव्य की दो प्रकार की स्थिति होती है अर्थात् अणु और स्कन्ध इस प्रकार पुद्गल द्रव्य के दो भेद है इनमें स्निग्ध और लक्ष गुण से तन्मय परमाणुओं का समुदाय स्कन्ध कहलाता है ॥७॥ जो इस जगत में एक एक रूप से अवस्थित हैं वे सब अणु हैं, ये अणु कार्यलिङ्ग है अर्थात् सूक्ष्म होने के कारण प्रणु स्वयं तो दृष्टिगोचर नहीं होते किन्तु इनके संयोग से जो स्कन्धरूप कार्य होते हैं उनसे इनका परिज्ञान होता है । ये अणु द्रव्यायिकनय से निस्य हैं और पर्यायाथिकनय से अनित्य है ॥७६।। सूक्ष्मसूक्ष्म, सूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, स्यूलसूक्ष्म, स्थूल भोर स्पूलस्थूल "इस प्रकार पुद्गल द्रव्य छह भेद वाले हैं ।।८०॥ इनमें जो एक प्रवेशी परमाणु है पह सूक्ष्म सूक्ष्म कहलाता है । जो मनुष्यों के नेत्रों के द्वारा नहीं देखे जा सकते ऐसे कर्मरूप पुद्गल सत्पुरुषों के द्वारा सूक्ष्म माने गये हैं । स्पर्शन रसना प्रारण और धोत्रेनिय के द्वारा जो पुद्गल प्रकटता को प्राप्त होते हैं परन्तु नेत्र इन्द्रिय से नहीं देखे जा सकते वे स्पर्श रस गन्ध और शम्द जिनागम में सूक्ष्मस्थूल कहे गये हैं अर्थात् नेत्रों से न दिखने के कारण सूक्ष्म हैं और अन्य इन्द्रियों से जाने जाते हैं इसलिये स्थूल हैं । छाया चविनी तथा प्रातप प्रावि स्यूल सूक्म जानने के योग्य है अर्थात् जो नेत्रों से दिखने के कारण स्थूल हैं परन्तु पकर में नहीं पाते इसलिये सूक्ष्म हैं । जल, ज्वाला मावि पदार्थ विद्वानों के द्वारा स्थूल कहे
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