________________
१८२ )
* श्री पाश्वनाथ चरित -
इन्द्रवम्रा बाल्येऽपि यो व्याप जिनाधिनाथः । संवेगमेकं सकलाक्षसौख्ये । मुक्तिस्त्रियापितचित्तवृत्ति । तं पार्श्वनाथं प्रणमामि भक्त्या ।। १३७।।
इति श्री भट्टारकसकलकीतिविरचिते श्रीपार्श्वनाथचरित्रे बालक्रीडाबेराम्योत्पत्तिवर्णनो नाम चतुर्दशः सर्गः ।
जिन जिनेन्द्र ने बाल्य अवस्था में ही समस्त इन्द्रिय सुखों में एक संवेगभाव को प्राप्त किया है तथा जिनको चित्तवृत्ति मुक्तिरूपी स्त्री में लग रही है उन पाश्र्वनाथ भगवान को मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूं ॥१३७।।
इस प्रकार श्री भट्टारक सकलक्रोति के द्वारा विरचित श्रीपार्श्वनाथ चरित में बालक्रीडा प्रौर वैराग्योत्पत्ति का वर्णन करने वाला चौदहयां सर्ग समाप्त हुभा ॥१४।।