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* श्री पार्श्वनाथ चरित #
धर्माराम हुताशनं यतिवराः सर्वास्रवं कर्मणा
तपोभिराशुहि निराकुर्वीध्वमेवादरात् ।। ७२ ।। पासवानुप्रेक्षा
सर्वानिरोधो यस्तपसा त्रयोदशप्रकारा हि द्विषड्भेदा धनुप्रेक्षाः मनोवाक्कायरोधातिशुभलेश्याः
शानिनां महान् । संवरो मुक्तिदाता स कीर्तितो जिनपुङ्गवैः ११७३ ॥ समितिव्र गुप्तवः । दशैव लक्षणान्येव धर्मस्य साधनानि च ।। ७४ ।। परीष जयोऽखिलः । संयमः पञ्चधा घशुक्लध्यानाक्षनिग्रहाः ।।७५।। सुभावनाः । एते कारणभूताः संवरस्य मुनिभिर्मताः ।। ७६ ।।
संवरेण विना
संवरेण समं किञ्चित् तपोवृत्तयमादिकम् । स्तोकं हि यष्कृतं तत्स्यात्सर्व] मुमसे निबन्धनम् ॥७७॥ पुस तपोवृत्तादिसेवनम् । शास्त्रादिपठनं कृत्स्नं यावत्स्यात्त ु बखण्डनम् ॥७८ सवरः परमो मित्रो मुक्तिनाथां पितामहः । अनन्तकर्मशत्रुनोऽनेक शर्माकरो भवेत् १७६१ ज्ञात्वेति सोऽनिशं कार्यस्तपोध्यानश्रुतादिभिः । निवार्याधास्रवं यत्नान्मुक्तयेऽनन्त शर्मकृत् ||८०||
में तत्पर है, मुक्तिरूपी लक्ष्मी को चुराने वाला है, संसार सागर में डुबाने वाला है, मुनिराजों ने ध्यानरूपी खड्ग के द्वारा जिसका नाश किया है, और जो धर्मरूपी उपवन को जलाने के लिये अग्निस्वरूप है ऐसे समस्त कर्मों के प्राव को है मुनिवर हो ! सम्यग्वर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र और सम्यक तप के द्वारा बड़े श्रादर से शीघ्र ही नष्ट करो ॥७२॥ ( इस प्रकार भावानुप्रेक्षा का चितवन किया )
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ज्ञानी जीवों के तप के द्वारा जो समस्त प्रात्रव का रुक जाना है उसे जिनेन्द्र भगवान् ने मुक्ति को देने वाला महान् संबर कहा है ||७३|| पांच समिति पांच महाव्रत और तीन गुप्ति के मेव से तेरह प्रकार का चारित्र, धर्म के साधन स्वरूप उत्तम क्षमा आदि दश लक्षरण धर्म, बारह अनुप्रेक्षाएं, सब परोषहों का जीतना, सामायिक आदि के भेद से पांच प्रकार का संयम, धर्म्यध्यान, शुक्लध्यान तथा इन्द्रिय निग्रह, मन वचन काय को रोकना, अत्यन्त शुभ लेश्श और मैत्री आदि उत्तम भावनाए मुनियों ने इन्हें संवर का का कारण माना है ||७४-७६ ।। संवर के साथ जो कुछ भी तप चारित्र तथा इन्द्रियदमन आदि किया जाता है वह सब मात्रा में अल्प होने पर भी मोक्ष का कारण होता है ||७७।। संदर के बिना पुरुषों का जो तप और चारित्र का सेवन तथा शास्त्रादि का पढ़ना है वह सब तुम खण्डन के समान है || ७८ ॥ संवर परम मित्र है, मुक्तिरूपी स्त्री का पितामह है, अनन्त कर्म शत्रुनों को नष्ट करने वाला है तथा प्रनन्तसुख की खान है ।७६ | ऐसा जानकर मुक्ति की प्राप्ति के लिये यत्नपूर्वक पापात्रय को रोकना चाहिये तथा तप ध्यान और शास्त्र
१.पापात्स्यात बखण्डनम् स० घ० ।