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* षोडश सर्ग
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तदा प्रयाणभेर्योऽत्र शश्वदास्फालिताः सुरैः । गीर्वाणकरसंस्पर्शाध्वनुश्चामरानकाः ॥५६॥ मोहारालिजयोद्योगसमयोऽयं जगत्पतेः । इत्युच्चै?षयामासुर्देवाः शक्राज्ञया तदा ।।६।। जयकोलाहलं कुटुंह ष्टा देवाः खगा मुदा । भतु रग्रे खमारुध्य वधिरीकृतदिग्मुखम् ।।६१।। तदा मङ्गलगीताजयनन्दादिघोषणः । सुरानकमहाध्यानयंभूद्रुद्ध नभोऽङ्गणम् ।।६२॥ नभोरङ्ग नटन्तीषु नाकस्त्रीषु सविभ्रमम् । विचित्रः करणं रम्यैपछत्रबन्धादिलाधवैः ।। ६३।। गायन्तीषु सुकण्ठीषु किन्नरीषु फलस्वनम् । गीतोषं स्वगुणब्धं विभोनिष्क्रमरणोत्सवे' १६४।। मङ्गलानि जिनाधीशगुणहब्धानि सुस्वरैः । मुदा कालोचितान्युच्चः पठत्सु सुरवन्दिषु ।।६।। देवेषूद्भ तहर्ष
नानाकेतनहारिषु । इतोऽमुतः प्रधावत्सु ससंहर्ष नभस्तले ।।६६।। अग्रेसरीषु लक्ष्मीषु पङ्कजापितपाणिषु । साधं समङ्गलार्धाभिदिक्कुमाराभिरादरात् ।।६७।। ध्वनन्तीषु दिशो व्याप्य देवेन्द्रानककोटिषु । इत्यमीषु विशेषेषु प्रभवत्सु महोत्सवम् ।।६।। परार्द्ध घमणिनिर्माणं दिव्ययानधिष्ठितः । वीज्यमानोऽमराधी मनोज्ञः सुप्रकीरणक: ।।६।। उस समय देवों के द्वारा निरन्तर ताडित प्रयाग-मेरियां और देवों के परह, देवों के हाथ का स्पर्श पाकर जोरदार शब्द कर रहे थे ।।१६।। उस समय इन्द्र की प्राज्ञा से देव उच्च स्वर से ऐसी घोषणा कर रहे थे कि यह जगत्पति का मोहरूपी शत्रु को जीतने के उद्योग का समय है ॥६०॥हर्ष से भरे हुए देव और विद्याधर स्वामी के प्रागे आकाश को घेर कर दिशात्रों के अग्रभाग को बहरा बना देने वाले जय जयकार का कोलाहल हर्ष से कर रहे थे ॥६१॥ उस समय मङ्गलगीत प्रादि से, जय नन्द प्रावि की घोषणाओं से और देव दुन्दुभियों के महान शब्दों से प्राकाशाङ्गण व्याप्त हो गया था ॥६२॥
जब आकाशरूपी रङ्गभूमि में देवाननाएं हावभावों के साथ नाना प्रकार के रमणीय करणों और छत्र बन्ध आदि को शीघ्रता से नृत्य कर रही थीं । जब उत्तम कण्ठों वाली किन्नरियां दीक्षा कल्याणक के उत्सव में अपने गुणों से युक्त भगवान के गीतसमूह को मधुर स्वर से गा रही थीं। जब देवों के बन्दीजन जिनदेव के गुणों से युक्त तत्काल के योग्य मङ्गल पाठों के हर्ष पूर्वक अच्छे स्वरों द्वारा उच्चस्थर से पढ़ रहे थे। जब प्रकट हुए हर्ष से युक्त, नानाप्रकार की पताकानों को लिये हुए देव हर्षसहित प्राकाश में इधर से उधर दौड़ रहे थे। जब हाथों में कमल लिये हई लक्ष्मी नामक देधिया मङ्गल द्रव्यों से युक्त दिपकुमारियों के साथ आदर पूर्वक प्रागे आगे चल रही थीं । जब देवों के करोड़ों बाजे दिशात्रों को व्याप्त कर शब्द कर रहे थे। और जब ये सब विशेष कार्य महोत्सव को प्रभावपूर्ण बना रहे थे ॥६३-१८॥ अब श्रेष्ठ मरिणयों से निर्मित दिव्य
१. निष्कमणोत्सवै ख. ध ।