________________
* द्वादशम सर्ग . भेरीनादो महानासीद्वयन्तराणां सुधामसु । प्रासनादिप्रकम्पं वा तथा सर्व सुरेशिनाम् ।।६।। शङ्खशब्दोऽप्यभूद्दिव्यसौधेषु भवनेशिनाम् । जिनेन्द्रजन्ममाहात्म्याच्छेषाश्चर्य तथा महत् ।।१०।। इत्यादिविविधाश्चर्यान् संयिलोक्य सुरेशिनः । ज्ञात्वावधिबलात्कुयु बुद्धि तज्जन्मकर्मणि ॥११॥ तत्र शक्राशया देवपृतना निर्ययुर्दिवः । सवानास्तारतम्येन महाब्धेरिव वोचयः ।।१२।। हस्तिनोऽश्वा रथा गन्धर्वा नर्तक्य: पदातयः । वृषा इति सुरेशानां सप्तानीकानि निर्ययुः ।।१३।। अथसौधर्मकल्पेश इभमैराबताभिधम् । आरुह्य सममिन्द्राण्या प्रतस्थे निर्जरैवतः ।।१४।। ततः सामानिकास्त्रायस्त्रिशपारिषदामराः। प्रात्मरक्षा दुतं लोकपालास्तं परिवनिरे ।।१५।। तर्थशानादिकल्पेशाः स्वं स्वं वाह्नमाश्रिताः । सार्द्ध स्वपरिवारेरण महाभूत्या विनिर्ययः ।।१६।। तदाभवन्महाध्वानो देवानां जयघोषणः । दुन्दुभीनाञ्च शब्दोधर्देवानीकेषु विस्फुरन् ।।१७।। केचिद्धसन्ति गायन्ति वल्गन्त्यास्फोटयन्ति च । पुरो धान्ति नृत्यन्त्यमरास्तत्र प्रमोदिनः ।।१।। ततो नभोऽङ्गणं कृत्स्नमारभ्य स्वस्ववाहनः । विमान एच सृजन्तो वाधान्यस्वर्गान्तरं दिवः ।।१६।। हुए ॥६॥ भ्यन्तर देवों के निवास गृहों में बहुत भारी मेरी का शब्द हुग्रा और इन्द्रों के प्रासन आदि का कम्पन सब कुछ मुसा भानती देवों के सुन्दर भवनों में शङ्खनाद भी हुमा और जिनेन्द्र जन्म के माहात्म्य से अन्य महान् प्राश्चर्य भी हुए ॥१०॥ इत्यादि अनेक प्राश्चयों को देखकर तथा प्रवधिज्ञान से उनका कारण जान कर इन्द्रों ने जिनेन्द्र जन्म सम्बन्धी अभिषेकादि कार्यों के करने में बुद्धि लगाई ॥११॥
वहां इन्द्र की आज्ञा से सब्ब करती हुई देव सेनाएं क्रमशः स्वर्ग से ऐसी निकली जैसे किसी महासागर से तरङ्ग निकलती हैं ॥१२॥ हाथी, घोड़े, रथ, गन्धर्व, नर्तकी, पवाति, और वृषभ, इस प्रकार इन्द्रों की ये सात सेनाएं बाहर निकलीं ॥१३॥ तदनन्तर सौधर्मेन्द्र, इन्द्राणी के साथ ऐरावत हाथी पर सवार होकर देवों से परिवृत्त होता हुमा चला ।।१४॥ तत्पश्चात् सामानिक, प्रायस्त्रिश, पारिषय, प्रात्मरक्ष और लोकपाल देवों ने उस सौधर्मेन्द्र को घेर लिया अर्थात् ये सब इन्द्र के साथ चलने लगे ॥१५॥ इसी प्रकार ऐशान प्रादि कल्पों के इन्द्र भी अपने परिवार के साथ अपने अपने वाहनों पर प्रारूद्ध होकर बड़े वैभव से बाहर निकले ॥१६॥ उस समय देवों की जय घोषणा और दुन्दुभियों के शब्द समूहों से देव सेनामों में बहुत भारी कोलाहल प्रकट हो रहा था ॥१७॥
वहां हर्ष से भरे हुए कोई देव हंस रहे थे, कोई गा रहे थे, कोई इधर उधर टहल रहे थे, कोई जोरदार शब्द कर रहे थे, कोई प्रागे दौड़ रहे थे और कोई नृत्य कर रहे थे ॥१॥ तदनन्तर अपने अपने वाहनों और विमानों से समस्त गगनाङ्गण को रोककर १. प्रकम्प प २. सुरसेनासु ।