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• श्री पार्श्वनाथ परित
मालिनी अखिलगुणसमुद्र विश्वतत्त्वप्रदीपं, रहितसकलदोषं भव्यसत्त्वैकबन्धुम् ।
दुरिततिमिरभानु विश्वविघ्नाग्निमेषं, ह्मसमममलबुद्ध पार्श्वनायं स्तुवेऽहम् ।।११८।। इति भट्टारक---श्री सकलकीतिविरचिते श्री पार्श्वनाथचरित्रे वजनाभिचक्रिवराम्योत्पात - तपो. घेवेयकगमननाम पञ्चमः सर्गः ।।५।।
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जो समस्त गुरणों के सागर हैं, समस्त तस्वों को प्रकाशित करने के लिये श्रेष्ठ बीपक हैं, समस्त दोषों से रहित हैं, भव्य जीवों के अद्वितोय बन्धु हैं, पापरूपी अन्धकार को नष्ट करने के लिये सूर्य हैं, अखिल विघ्न रूपी अग्नि को शाम्त करने के लिये मेघ हैं तथा अनुपम है ऐसे पार्श्वनाथ भगवान की मैं निर्मल बुद्धि के लिये स्तुति करता हूँ॥११७॥
इस प्रकार भट्टारक श्री सकलकीति द्वारा विरचित श्री पार्श्वनाथ चरित में बच. माभित्रकवर्ती के वैराग्य को उत्पत्ति, तप तथा मध्यम प्रबेयक में जाने का वर्णन करने बाला पञ्चम सर्ग समाप्त हुप्रा ॥५॥
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