________________
-----------------
--..
.-....
* को पानाव परित देवेशा यदि मोक्षायेहन्ते जन्म महाकुले । यत्र मुक्त्यङ्गनासक्तास्तत्र का वर्णना परा ।।१६11 इत्यादिवर्णनोपेतदेशस्य मध्यभागगम् । पुरमश्वाभिघं भाति विश्वद्धिवृषसज्जनः' ।।२०।। तुङ्गमालप्रतोलीकमनुल्लङ्घपरिवजः । यद्रत्नसंकुलाम्भोभिः दीर्घखातिकया ध्यभात् ।।२१।। घामाग्रस्थध्वजवातकरैराह्वयतीव यत् । नाकिना धर्ममुक्त्यादिसाधनाय बभौ पुरम् ।।२२।। धर्मोपकरगहॅममयः कटाग्रकेतुभिः । यातायातन रस्त्रीभिर्गीतवाद्यश्च नर्तनः ।। २३।। जयस्तवादिशब्दोषरभिषेकमहोत्सवः ।रत्नबिम्बंजिनागारा भ्राजन्ते वा वृषाकराः ।।२४।। भत स्त्रीणां महायुग्मा गम्छन्तो जिनधामनि । पूजोपलक्षिता रम्या देवयुग्मा इवाबभुः ।।२।। पूजां कृत्वा जिनेशानामागच्छन्त्यो निजं गृहम् । काचिन्नार्यो विभान्स्युच्चभूषण मगङ्गनाः ॥२६।। काश्चिद्गायन्ति नृत्यन्ति स्नपयन्ति जिनेशिनम् । पूजयन्ति पराः काश्चिन्नार्यः खग्य' इवान ताः ॥२७॥ यत्रोत्पम्ना गृहद्वारं प्रपश्यन्त्येव गेहिनः । प्रत्यह पात्रदानाय दानिनो धर्मवासिताः ॥२८॥ उत्तम लक्ष्मी को प्राप्त होते हैं ॥१८॥जब मुक्तिरूपी स्त्री में प्रासक्त रहने वाले इन मोक्ष के लिये जहां के उच्चकुल में जन्म लेने की इच्छा करते हैं तब वहां की दूसरी बर्णना क्या हो सकती है? अर्थात् कुछ नहीं ॥१६॥
इत्यादि वर्णना से सहित उस पम खेश के मध्य में एक प्रश्वपुर नामका नगर है जो नाना प्रकार की सम्पदाओं से विभूषित धर्मात्मा जनों से सुशोभित हो रहा है ॥२०॥ उन्नत कोट और गोपुरों से सहित तथा शत्रु समूह के द्वारा अनुल्लङ्घनीय जो नगर रत्नों से ध्याम जल से उपलक्षित विशाल परिखा से सुशोभित था ॥२१॥ जो नगर महलों के अग्रभाग पर स्थित ध्वजानों के समूहरूप हाथों से ऐसा सुशोभित होता था मानों धर्म और मोक्ष प्रादि की साधना के लिये देवों को बुला ही रहा था ।।२२।। सुवर्णमयधर्म के उपकरणों से, शिखरों के अग्रभाग पर फहराती हुई पताकानों से, माने जाने वाले नर नारियों से, सगीत बाथ और नृत्यों से, जय जय प्रावि स्तुति के राम्ब समूहों से, अभिषेक के महोत्सवों से और रत्नमयी प्रतिमानों से, जहां के जिनमन्दिर धर्म की खानों के समान सुशोभित होते हैं ॥२३-२४॥ पूजा की सामग्री लेकर जिन मन्दिरों की ओर जाने वाले स्त्री पुरुषों के सुन्दर महा युगल जहाँ देव दम्पतियों के समान सुशोभित होते थे ॥२५॥ जहां जिनेन्द्र भगवान की पूजा कर अपने घर को प्रोर प्राप्ती हुई कितनी ही स्त्रियां उत्तम प्राभूषणों से देवाङ्गनाओं के समान सुशोभित होती थीं ॥२६॥ जहां प्राश्चर्य उत्पन्न करने वाली विधाधरियों के समान कोई स्त्रियां गाती हैं, कोई नृत्य करती हैं, कोई जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक करती हैं, और कोई पूजन करती है ॥२७॥ जहां उत्पन्न हुए दानी तथा धर्म । विविधमम्मदाभूषितामिकसुरमैः २. शिश्न राम्रगताकाभि: ३. विद्याधर्म इव ।