Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust
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________________ Ple ave श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् Pvdo s एकवस्त्रा हहा भैमी, स्वपित्येकाकिनी वने। अहो नलस्य दाराणामसूर्यम्पश्यताद्भुता // 295 // अन्यय :- हहा एकवस्त्रा भैमी एकाकिनी वने स्वपिति। अहो! नलस्य दाराणाम् असूर्यम्पश्यताद्भुता वर्तते // 29 // जिविवरणम् :- हहा खेदे। एक वस्त्रं यस्याः सा एकतस्त्रा भीमस्य अपत्यं स्त्री भैमी दमयन्ती एकाकिनी वने स्वपिति। अहो | नलस्य दाराणां पत्नीनां सूर्यं न पश्यन्ति इति अंसूर्यपश्या: असूर्यम्पश्यानां भाव: असूर्यम्पश्यता अद्भुता आश्चर्यकारिणी वर्तते // // 29 // सरलार्य :- हहा ! एकवस्त्रा दमयन्ती एकाकिनी वने स्वपिति / अहो ! नलस्य पत्न्याः असूर्यम्पश्यता अद्भुता वर्तते // 295 / / ગુજરાતી :- અરે રે ફક્ત પહેરેલા એક જ વસ્ત્રવાળી આ દમયન્તી એકલી જંગલમાં સુતી છે, અહો! નલરાજાની રાણીનું આ मार्थ, सूर्यने पान५j (नुभो!) // 28 // हिन्दी :- * अरेरे! सिर्फ एक ही वस्त्र धारण की हुई यह दमयंती एकाकी वन में सोयी है। अहो! नलराजा की राणी का आश्चर्य सूरज को भी देखने नही है। / / 295|| मराठी :- अरेरे। फक्त एकच वस्त्र परिधान केलेली ही दमयंती एकटी जंगलात झोपलेली आहे, अहो। नलराजाच्या पत्नीचे सूर्याला न पाहाणें आश्चर्यकारक आहे. // 29 // A English - He wondered that this delicate Damyanti who is lying there alone with just a garment over her in this forest will even make the rising sun put his face down in shame. . हहा वनचरीवेयं, जज्ञे मत्कर्मदोषतः॥ जीवन् मृतस्तदत्राहं, हताश: करवाणि किम् // 296 // 3 अन्वय:- हहा मत्कर्मदोषत: वनचरी श्व इयं जज्ञे। तद् अत्र अहं जीवन्मृत: हताश: किं करवाणि // 296 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust