Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 868
________________ ORDONGARPrevgdeoश्रीजयशंग्वग्यविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम ParmoupouTRASpoolog 卐मराठी : 1:- श्रद्धालु ऐसी रानी वहाँ चौबीस तीर्थंकरो को प्रणाम कर के जब उठी, तब उसी समय शासनदेवी ने उसे उसके नगर में पहुंचा दिया // 914 // अष्टापद पर्वतावर चोवीस तीर्थंकरांना वन्दन करून उठलेल्या त्या श्रद्धाळू राणीला शासनदेवतेने त्याच क्षणी तिच्या नगरात पोहोचविले.॥९१४॥ English :- The queen who had now aquired utmost faith in the Jain religion, was taken back to the city by the Godden of discipline and control, efter she had worshiped in devotion; twenty four Trithankars. मयाऽवन्दि महातीर्थमिति श्रद्धातिरेकतः॥ चक्रे प्रतिजिनं वीरमत्या चाचाम्लविंशतिः॥९१५॥ 卐अन्वयः- मयां महातीर्थम् अवन्धि, इति श्रद्धातिरेकत: वीरमत्या प्रतिजिनं आचाम्लविंशति: चक्रे॥९१५॥ विवरणम्:- मया महत् च तत् तीर्थ चमहातीर्थम् अवन्दि अवन्धता इतिमत्त्वाश्रद्धायाः अतिरेक: शातिरेकः तस्मात् लातिरेकतः वीरमत्या जिने जिने प्रतिजिनं आचाम्लानां विंशति: चक्रे। प्रतिजिनं विंधति: आचाम्लानि कृतानि॥९१५॥ सरलार्थ:- मया महातीर्थम् अवन्यता इति मत्वा श्रवातिरेकात् वीरमती प्रतिजिनं विंशतिमाचाम्लानि चकार // 915|| ગુજરાતી:- મેં મહાન તીર્થને વંદન કર્યું છે, એમ વિચારી અત્યંત શ્રદ્ધાથી વીરખતી રાણીએ દરેક જિનેશ્વરને અપેકીને વીસ કે આયંબિલો કર્યા.૫૯૧૫ जहिन्दी :- मैन महान तीर्थ को प्रणाम किया है, ऐसा विचार कर के अत्यंत श्रद्धासे उस वीरमती रानी ने हर एक जिनेश्वर की अपेक्षा से बीस आयंबिल तप किये। // 915 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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