Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

View full book text
Previous | Next

Page 874
________________ ORMessistasha श्रीजयशेस्वारस्यूरिविरचितं श्रीनलषजयन्तीचरित्र Patestatestandestorestoresentedge KP विवरणम्:- तन्वा शरीरेण इव भिन्नाभ्यां किन्तु चेतसा मनसा न भिन्नाभ्याम् अभिन्नाभ्यां धर्मस्य कर्माणि धर्मकर्माणि धर्मकर्मसु निलीनाभ्यां धर्मकर्मनिलीनाभ्यां धर्मकर्मनिरताभ्यां ताभ्यां दम्पतिभ्यां राज्ञा मम्मणेनरायावीरमत्याच कियानपिकाल: निन्ये यापितः॥९२१॥ सरलार्थ:- शरीरेण भिन्नाम्यां किन्तु मनसा एकरुपाभ्यां ताभ्यां धर्मकर्मसु निलीनाभ्यां कियान् अपि काल: वापितः / / 921 // ગુજરાતી - ફક્ત શરીરથી જ જુદા પરંતુ મનથી એક અને ધર્મકાર્યોમાં આસકત થયેલા એવા તે બન્નેએ કેટલોક સમય વ્યતીત કરે કર્યો.૯૨૧ ॐ हिन्दी:- केवल शरीर से ही अलग, लेकिन मन से अलग नही और धर्मकार्य में आसक्त हुए ऐसे उन दोनों पति-पत्नी ने बहुत समय व्यतीत किया।॥९२१॥ मराठी:- केवळ शरीराने भिन्न (अलग) पण मनाने मात्र एकरूप अशा, राजा मम्मण व राणी वीरमतीने या जोडप्याने धर्मकार्यात लीन राहून बराच काळ घालविला.॥९२१॥ 'English :- Both the husband and wife, whowere just seperated in body, not in mind, became sopregmatic and Immersed in the fire of religion. They thus lived a life of chantity and holiners. कालधर्म तत: प्राप्य तुल्येनैव समाधिना॥ देवलोकेऽप्यभूतां तौ देवी दाम्पत्यशालिनौ // 922 // अन्यय:- ततः तुल्येन एव समाधिना कालधर्म प्राप्य तौ देवलोकेऽपि दाम्पत्यशालिनी देवौ अभूताम् // 922 // विवरणम्:- ततः तदनन्तरं तुल्येन समेन एव समाधिता कालस्य धर्म: कालधर्म मृत्यु प्राप्य समाधिभरणं मृत्वा तौ शवपि देवस्य .लोक: येवलोकः, तस्मिन् देवलोके अपिजायाच पतिश्चदम्पती वम्पत्योःभाव: दाम्पत्यमा वाम्पत्यमा वाम्पत्येनशालेते इत्येवंशीले दाम्पत्यशालिनौ पति-पत्वीभावेन शोभमानौ देवी (देव: श्वदेवी च देवी) अभूताम् // 922 // NABALEKHABAEEEEEEE Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.

Loading...

Page Navigation
1 ... 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915