Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 880
________________ a ssentenderseasesRess श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलवमयन्तीचरित्रम् BRTNADATABARRBARTAMANRTPPY हिन्दी :- दूध जैसे उज्ज्वल जलकणों से मानो अपना रस लाता हुआ और नये अंकुरो द्वारा अपने समागम से पृथ्वी को मानो रोमांचित करता हुआ वक्रितुकी राधिका समय आया।९२८॥ मराठी:- यासारख्या उज्ज्वल पाण्याच्या धारांनीजण स्वत:चे यश विस्तारीत करणारा असा नव्या अंकुरांनी स्वत:च्यासमागमनाने पृथ्वीला जण रोमांचित करीत असावा! असा, वर्षाऋत् आला. // 928 // English :- Just as it seems that the riik, by its each lots of aqua, wishes to spread its own radiance and fuiyu.it, in the same way, with the ice of the earth and the monoons, its seems as though the sarth has darked Muell with new omaments of shoots and scrubs bushes as it has been horipilated. केकारावै: पठयमानो मागधरिव केकिभिः॥ विधुज्झलत्कृतिव्याजात् तेभ्य: स्वर्णमिवोत्सृजन // 929 // अन्वय:- मागधैः इव केकिभिः केकारावैः पठ्यमानः, विधुज्झलत्कृतिव्याजात् तेभ्य: स्वर्णम् उत्सृजन् इव .... // 929 // विवरणम्:- मागधैः बन्दिभिः स्तुतिपाठकैःश्व केका: एषां सन्ति इति केकिनः, तै: केकिभिः मयूरैः केकारवै: पठ्यमान: स्तूयमानः, विधुत:क्षलत्कृतिः बिझालाकृतिः। विधुशलत्कृते: व्याज: मिषं तस्मात् विधुज्झलत्कृतिव्याजात विधुच्चकासनमिषात् तेभ्य: केकिभ्य: स्वर्णम् उत्सृजन ददत् इव....वरात्र: अवतीर्णः // 929 // सरलार्य:- स्तुतिपाठकै: इव मरैः केकारवैः स्वयमानः, वियुकासनमिषात् तेभ्यः स्तुतिपाठकेभ्य: मद्रेभ्यः स्वर्णम् ददत् इव // 929 / / ગુજરાતી - અનુચરો સરખા મયૂરો વડે તેમના કેકારવાથી સ્તુતિ કરાતો, વીજળીના ઝબકારથી જાણે તેઓને સુવર્ણનું દાન આપતો.૯૨૯ો. हिन्दी:- स्तुति पाठक के समान मयूरों के केकारव द्वारा स्तुति किया गया, बिजली के चमकने के बहाने मानो उनको स्वर्णदान देता हुआ वर्षाऋतुकी रात्रिका समय आया // 929 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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