Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 873
________________ Osmasassulashes श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् 88888888Advgaroo धन्या पुणयासि देवि त्वमिति राज्ञा जनेन च // स्तूयमाना मुहुर्वीरमती स्वपुरमागमत् // 920 // अन्वयः-. हे देवि! त्वं धन्या असिा पुण्या असि। इति राज्ञा जनेन च मुहुः स्तूयमाना वीरमती स्वपुरमागमत् // 920 // विवरणम्:- हे देवि! त्वं धन्या असि। त्वं पुण्या असिा इति एवंप्रकारेण राज्ञा गम्मणेन्जनेन च मुहुः वारं वारं स्तूयमाना प्रशस्यमाना वीरमती राज्ञी स्वस्य पुरं स्वपुरम आगमत् आयात् // 920 // सरलार्थ:- हे देवि त्वं धन्या असि। त्वं पुण्या पुण्यदर्शना असिा इति राज्ञा मम्मणेन जनेन च पुन: पुन: प्रशस्यमाना वीरमती स्वपुरम् आगमत् // 920 // ગજરાતી:- હે દેવી! તને ધન્ય છે, તું પુણયશાલી છે, એમ રાજા વડે તથા લોકો વડે વારંવાર અતિ કરાતી એવી વીરમતી રાણી પોતાના નગરમાં આવી.i૯૨૦ हिन्दी :- "हे देवी! तुझे धन्य है, तू पुण्यशाली है," इसप्रकार राजा से और लोगों से बार बार जिसकी स्तुति की गयी ऐसी वीरमती मराठी: हे देवी! त् धन्य आहेस. त् पुण्यशाली आहेस, अशी राजाने आणि लोकांनी वारंवार स्तुती केलेली अशी वीरमति राणी स्वत:च्या नगरात आली.॥९२०।। 弱緊緊騙騙騙騙騙騙城 deed and that she is cirtuous, from her husband and her nuhjects. ताभ्यां तन्वेव भिन्नाभ्यामभिन्नाभ्यां तचेतसा॥ धर्मकर्मनिलीनाभ्यां निन्ये काल: कियानपि // 921 // अन्वयः- तन्वा इव भिन्नाभ्यां चेतसा तु अभिन्नाभ्यां धर्मकर्मनिलीनाभ्यां ताभ्यां कियानपि काल: निन्ये // 921 //

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