Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 859
________________ SENDSHARANPnreleservous श्रीजयशरखरसूरिविरचितं श्रीनलवमयन्तीचरित्रम् RamasteeuveetaveladigesKMRPANNA सोऽवदत् प्रास्थिषि स्थानादहं रोहितकाभिधात्॥ अष्टापदगिरिं गन्तुमिच्छुस्तीर्थ विवन्दिषुः // 904 // Webs 卐 अन्वय:- सः अवदत् - अहं रोहितकाभिधात् स्थानात् प्रास्थिषि। अष्टापदगिरिं तीर्थ विवन्दिषु: गन्तुमिच्छुः अस्मि // 10 // विवरणम:- सामनिवरः अवदत्-अहं रोहितकम् अभिधायस्य तदरोहितकाभिधं, तस्मात रोहितकाभिधात रोहितकनाम्न: स्थानात प्रास्थिषि प्रातिष्ठे। अष्टापपगिरि तीर्थ वन्दितुमिच्छु: विवन्दिषुः गन्तुम इच्छु: अस्मि॥९०४॥ जसरलार्थ:- सः मुनिवरः अवदत् - अहं रोहितकनाम्नः स्थानात् प्रस्तित: अस्मिा अष्टापदगिरि नाम तीर्थं वन्दितुं तत्र गन्तुमिच्छामि // 904|| ગુજરાતી:- પછીતે સાધુએ કહ્યું કે, હું રોહિતક નામના સ્થાનથી આવું છું, તથા તીર્થવંદન કરવાની ઇચ્છાથી અષ્ટાપદ પર્વત પર Gj.com :- फिर उस साधु ने कहा कि, मैं रोहितक नामक स्थान से आया हूँ, और तीर्थवंदना करने की इच्छा से अष्टापद पर्वत पर जा रहा हूं॥९०४॥ पर मराठी:- नंतर त्या साधने म्हटले की, मी रोहितक नावाच्या स्थानावरून आलो आहे, आणि तीर्थवंदन करण्याच्या इच्छेने अष्टापट पर्वतावर जात आहे.॥९०४|| sa English :- Then the priest replied that he had come from a place called Rohitak and was heading for the sared mount of Ashtapad, in order to worship that spot. ite

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