Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 862
________________ ORDPRESISTRIANRAINERRISHRS श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् StotusaareewanSINHARISeii ગજરાતી :- પછી તેઓ બન્નેને અશ્રુજલથી ભીની આંખોવાળા જોઈને, તથા તેઓની યોગ્યતા જાણીને તે વિચક્ષણ મુનિરાજે मोने यापान जैनपी संभाव्यो.100७ हिन्दी :- फिर उन दोनों की अश्रुजल से गीली आँखे देख कर, और उनकी योग्यता जानकर उस विलक्षण मुनिराज ने उनको दयाप्रधान जैनधर्म कहकर सुनाया। // 907|| मराठी:- नंतर त्या दोघांचे डोळे अश्रृंनी डबडबलेले पाह्न हे धर्मोपदेशास योग्य आहेत. असे जाणून त्या मुनिराजाने त्यां दोघांना दयाप्रधान जैन धर्माचा उपदेश केला.॥९०७|| English :- Both of them had turn of repentance trickling down their eyes. Seeing this and understanding their calibre this profound and grotesque ascetie forgave them and spoke to them about the Jain religion. तमश्रुतचरं श्रुत्वा धर्म तत्र शुभाशयो। दम्पती तावरज्येतां को ह्यपूर्वे न रज्यते॥९०८॥ अन्वय:- तत्र तमश्रुतचरं धर्म श्रुत्वा शुभाशयौ तौ दम्पती तत्र अरज्येताम्। तथाहि अपूर्वे कः न रज्यते॥९०८॥ विवरणम्:- तत्र तम् अश्रुतचरम् अश्रुतपूर्व पूर्व कदापि न श्रुतं धर्म श्रुत्वा शुभ: आशय: ययोः तौ शुभाशयौ तौ जाया च पति: च दम्पती नृपः राज्ञी च तत्र तस्मिन् धर्मे अरज्येताम् अनुरक्तौ अभवताम्। तथाहि अपूर्वे क: न रज्यते अनुरागं न कुरुते // 908 // सरलार्थ:- तं पूर्व कदापि न श्रुतं धर्म श्रुत्वा शुभाशयौ तौ दम्पती नृपः राज्ञी च तस्मिन् पर्मे अनुरक्ती अभ्ताम् // 908 // ગુજરાતી:- પૂર્વે કોઈપણ વખતે નહી સાંભળેલા એવા ધર્મને સાંભળીને મનોહર આશયવાળા એવા તે બન્ને ને પ્રત્યે આદરવાળા यो, अपूर्व प्रत्येपुथी यायनी? // 40 // Jun Gun Aaradhak' Trust P.P.AC. GunratnasuriM.S.

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