Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust
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________________ ARROWeddressRASSORasses श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् gogasaRABolpasses अथ सा पथि गच्छन्ती, प्राप्यकं गिरिकन्दरम् / / अतिवाहयितुं वर्षा - स्तस्थौ तत्र महर्षिवत् // 374 // अन्वय :- अथ पथि गच्छन्ती सा एकं गिरिकन्दरं प्राप्य तत्र वर्षा: अतिवाहयितुं महर्षिवत् तस्थौ॥३७॥ विवरणम :- अथ सादमयन्ती पथि मार्गे गच्छन्ती सती एकं गिरेः पर्वतस्य कन्दरं गिरिकन्दरं प्राप्य लब्ध्वा तत्र तस्मिन् गिरिकन्दरे ॐ वर्षाः प्रावृदकालं अतिवाहयितुं महर्षिणा तुल्यं महर्षिवत् तस्थौ अतिष्ठत् // 37 // SAAT सरलार्थ :- अध मार्गे गच्छन्ती सती सा दमयन्ती एकं गिरिकन्दरं लब्ध्वा तत्र प्रावटकालं अतिवाहयितुं महर्षिवत् अतिष्ठत् / / 374 // ગુજરાતી:- પછી માર્ગે ચાલતાં તેણીને એક ૫ર્વતની અંદરગુકા પ્રાપ્ત થઈ, ત્યારે વર્ષાઋતુ વીતાવવા માટે દમયંતી મહાન ઋષિની પેઠે તે ગુફામાં નિવાસ કરીને રહી. 374 हिन्दी :- फिर रास्ते में चलते हुए उसे एक पहाड के अंदर गुफा प्राप्त हुई तब वर्षाऋतु व्यतीत करने के लिए दमयन्ती महान ऋषि के समान उस गुफा में रही। // 37 // मराठी :- रस्त्याने जाता जाता ती एका पर्वताच्या गुहेजवळ आली व पावसाळयाचे दिवस घालविण्यासाठी ती महर्षीप्रमाणे त्या गुहेतच राहिली. // 374 / / 骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗機 finglish - Then on the way, She happened to see a cave, carved in a mountain. She then decided to spend the monsoons in the cave, just as an eminent and a pious priest. Nigale