Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 819
________________ one sterestriestaelete श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलवमयन्तीचरित्रम् shrigadiereventeersingpreetuReles सरलार्थ:- अनन्तरं पृष्टः स कुब्ज विहस्व अवदत् - युष्माकं राजमार्गेऽपि भ्रमः भवति। साक्षात् वासवः इन्द्रः इव नल: छ। नारकाकृतिः / अहं च छ॥८५७|| ગુજરાતી:- પછી તેને પૂછવાથી તે હસીને બોલ્યો કે, હે રાજન આ સીધા ચોખા રાજમાર્ગમાં પણ તમોને કમ) ભ્રમ થાય છે? * સાક્ષાત ઈન્દ્ર સરખો નલમાં અને નારકી સરખી આકૃતિવાળો હું ક્યાં?in૮૫૭ના. न हिन्दी :- फिर उसे पूछने पर वह हंसकर बोला कि हे राजना इससीधे राजमार्ग में भी आपको (कैसा) भ्रम हो रहा है? साक्षात इन्द्र जैसा नल कहाँ? और नारकी जैसी आकृतिवाला मैं कहा? // 857|| हद मराठी :- मग त्याला विचारल्यानंतर तो हसून म्हणाला की, प्रसिब अशा राजमार्गातही तुम्हांला भ्रम होत आहे. साक्षात् इन्द्राप्रमाणे असलेला नलराजा कोठे? आणि नारकी जीवाप्रमाणे आकृती असलेला मी कोठे? / / 857|| Bis English :- When the hunchback was questioned, he laughed it off asking the king as to why in his wildest of dreams did he ever imagine to compare him, who is a shaelen being who is fitto go to hell to Nal who is like India in all ways. 第骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗零踢 तथाप्यत्सुपरुद्धस्तद्वक्षोऽङ्गुल्याथ सोऽस्पृशत् // अतिलाघवतो दृष्टेरिवान्त:स्थं तृणं हरन्॥८५८॥ अन्ययः- अम तथापि अति उपरुन्छ: स: अतिलाघवत: दृष्टेः अन्त:स्थं तृणं हरन् इव अङ्गुल्या तत्वक्ष: अस्पृशत् // 858 // न विवरणम्:- अथअनन्तरंतथापि अतिशयेन उपरुनःअत्युपरुद्धः सः कुब्ज: अतिलाघवत: अतिलाघवेनदृष्टेः नयनस्यअन्तः तिष्ठतीति अन्तःस्थं तृणं हरन् इव अतिलाघवत: अङ्गुल्या तस्याः दमयन्त्याः वक्ष: उर: तक्ष: दमयन्त्या : उरः अस्पृशत् // 858 // सरलार्थ:- तथापि अत्युपशब्दः सः कुब्जः अनन्तरं सतिलायवेन दृष्टेः अन्तःस्थं तृणं हरन इव अङ्गल्या दमयन्त्याः वक्षःस्थलम् अस्पृशत् / // 858 //

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