Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 834
________________ ORostatestantrastarasharestate श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलवणणन्तीचरिशमा userstatesterstatestatestaneg इत्युक्त्वाऽभ्यर्च्य तत्पादौ सप्तभि: स्वर्णकोटिभिः॥ कृतज्ञत्वं प्रकाश्याऽय स सुरोऽन्तर्दधे ततः // 875 // अन्वयः- इत्युक्त्वा तत्पदौ अभ्यर्च्य सप्तभि: स्वर्णकोटिभिः कृतज्ञत्वं प्रकाश्य अथ स: सुर: तत: अन्तर्दधे // 875 // वरणम:- इति उक्त्वा तस्या: दमयन्त्याः पादौ तत्पादौ दमयन्तीचरणौ अभ्यर्च्य पूजायित्वासप्तभि: स्वर्णानां सुवर्णमुद्राणां कोटिभिः स्वर्णकोटिभिः सप्तकोटिभिः सुवर्णमुद्राभिः कृतं जानातीति कृतज्ञः / कृतज्ञस्य भावः कृतज्ञत्वं प्रकाश्य प्रकटीकृत्य अथ अनन्तरं स: सुरः देव: तत: भीमस्यास्थानमन्डपात् अन्तर्दधे तिरोदधे॥८७५॥ सरलार्थ:- इति उक्त्वा तस्याः दमयन्त्याः पादौ पूजयित्वा सप्तकोटिभिः सुवर्णमुद्राभिः कृतज्ञता प्रकटीकृत्य से देवः ततः अन्तर्दये IICOS ગુજરાતી:- એમ કહીને, તથા તેણીના ચરણો પૂજીને સાત કોડ સોનામહોરો વડે પોતાનું કૃતલપણું જાહેર કરીને પછી તે દેવ ત્યાંથી અદશ્ય થયો.i૮૭૫ :- ऐसा कहकर, उसने उस के (दमयंती) चरण पूजकर सात करोड सोने की मोहोरों से अपनी कृतज्ञता प्रगट की। फिर वह देव वहाँ से अदृश्य हो गये। / / 875 // मराठी:- असे म्हणून दमयन्तीच्या चरणाची पूजा करून सात कोटी सोन्याच्या मोहोरांनी आपली कृतज्ञता प्रकट करुन तो देव तेथून अश्य झाला.11८७५|| English - Then saying thus, he worshipped the feet of Damyanti and presented her with seven crore gold coins to show his gratitude to her and then vanished. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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