Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 851
________________ amerasenasee श्रीजयशेखरसारिधिरणित श्रीनालक्ष्मव्यान्तीचारिश्रम hastarasnastarasANTRA प्रतिपन्नं मयाऽस्तिते व्रतावसरवंदनम॥ स एषोऽवसर: पुत्र चारित्राय तवाधुना // 804 // अन्वयः- हे पुत्र। मंत; व्रतावसरवेदनं प्रतिपन्नमस्ति / अधुना तव चारित्राय स एष: अवसरः अस्ति / / 894 // विवरणम:- हे पत्र मया ते तव व्रतस्य अवसरः व्रतावसरः। व्रतावसरस्य वेदनं व्रतावसरवेदनं व्रतावसरस्य ज्ञापनं प्रतिपन्नं - स्वीकृतसस्ति। अधुना तव चारित्राय चारित्रग्रहणाय एष: अवसर: समय: अस्ति।। इदानीं त्वं चारित्रं गृहाण // 894|| सरलार्थ:- हे पुत्र! मया तव व्रतस्यावसर ज्ञापनं स्वीकृतमस्ति / अधुना तव चारित्रवाहणाय अवसंरः अस्ति।।८९४।। ગુજરાતી:- હે પુત્રી તને ચારિત્ર લેવાનો સમય જણાવવાનું મેં કબૂલ કર્યું છે, અને હવે તને પરલોકનું સાધન કરવા માટેનો આ अस२७.॥८८४॥ हिन्दी.. हे पुत्र। तुझे चारित्र लेने का समय बताने का मैंने स्वीकार किया था, और अब परलोक की साधना करने के लिये यह समय उचित है। / / 894|| मराठी:- "हे मला! तुला मी चारित्र्य घेण्याची वेळ कळविण्याचे कबूल केले होते, आता ही वेळच तुला चरित्र ग्रहण करण्यास योग्य आहे."||८९४॥ English :- He continves saying that he had accepted the task to tell him that eats time for him to renounce the world and become a priest, to prepare the kay to open the lock of the other world. इत्यावेद्यागमदेवोऽथावधिज्ञानवानपि / / आगान्निरवधिज्ञानो जिनसेनाभिधो गुरुः॥८९५॥ न्वय:- इति आवेध अवधिज्ञानवान् अपि देव: अगमत् / अथ निरवधिज्ञानो जिनसेनाभिध: गुरु: आगात्। प

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