Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

View full book text
Previous | Next

Page 832
________________ ORGAHasaleelease बीणवशेस्वारसूरिविरचितं मीनलमयन्तीक्षरित्रम् shatasterstrasastessarada हिन्दी:- फिर एक दिन वह सब भीमराजा की सभा में बैठे हैं, इतने में दूसरे सूरज समान कोई तेजस्वी देव प्रभात में वहाँ आयो // 872 // मराठी:. नंतर एके दिवशी ते सगळे भीमराजाच्या सभेत बसले असतांना समान तेजस्वी कोणी देव सकाळीच तेथे आला.॥८७२।। English - Then one day when all were reated in the royal court of king Bhim, a radiant and a lustrous God arrived there at dawn, whose brightness and gloss reminded everyone there of a second sun. भिमीमचेऽअलिं बद्ध्वा त्वया गिरिवरीस्थया। यः प्रबोध्याहतं धर्म ग्राहितस्तापसामिधः / / 873 // सोऽहं विपद्य सौधर्मे जिनधर्मप्रभावतः॥ श्रीकेशरविमानेश: केशरालः सुरोऽभवम् ॥८७४युग्मम्।। अन्ययः अञ्जलिं बद्ध्या भैमीम् ऊचे - गिरिवरीस्थया त्वया प्रबोध्य य: आर्हतं धर्म ग्राहितः, स: तापसाभिधः अहं विपद्य न जिनधर्मप्रभावत: सौधर्मे श्रीकेशरविमानेश: केशरालः सुरः अभवमा।८७४॥ विवरणम्:- अअलिं बद्ध्वा बद्धाञ्जलि: भीमस्य अपत्यं स्त्री भैमी, तां भैमी भीमपुत्रीं दमयन्तीम् ऊचे वभाषे। गिरेः वरीयन गिरिदरी। गिरिदयां तिष्ठतीति गिरिदरीस्था, तया गिरिदरीस्थया पर्वतगुहास्थितया त्वया प्रबोध्य बोघं कृत्वा यश अर्हतः अयम् आर्हतः, तम् आईतं जैन धर्म ग्राहित: स: तापस: अभिधा यस्य सः तापसाभिध: तापसनामा अहम विपद्य मृत्वा जिनस्य धर्मः जिनधर्मः। जिनधर्मस्य प्रभाव: जिनधर्मप्रभाव:, तस्मात् जिनधर्मप्रभावत: साधर्मे देवलोको P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915