Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 821
________________ ARTHousandeesuspassage श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् Sadewaseerseasesewasenge ગુજરાતી - તેનો તેટલો પણ સ્પર્શ થતાં જ ક્ષણવારમાં વરસાદના જલના સંયોગથી જેમ નવા ઉગેલા અંકુરાવાળી પૃથ્વી થાય. તેમ દમયન્તીનું શરીર (રોમાંચિત) થયું.૮૫૯ हिन्दी :- उसका उतना स्पर्श होते ही क्षणभर में बरसात के जल के संयोग से जैसे नये उगनेवाल अंकुरोवाली पृथ्वी होता है.卐 उसीप्रकार दमयंती का शरीर रोमांचित हुआ।।८५९|| मराठी:- त्याचा तेवढा अतिशय हलका स्पर्श होताच क्षणभरात पावसाळ्याच्या पाण्याच्या संयोगाने जसे नव्या उगवणाचा अंकरांनी卐 पृथ्वी रोमांचित होते, त्याप्रमाणे दमयंतीचे शरीर रोमांचित झाले. // 859|| English - With just a light touch of Nal she exerienced horripilation, just as the fresh showers, accidently waters, sprouts and offshoots, whichin turn shoots out on every corner of the earth, as ifbeing horripilated, by the touch of rian. 听听听听听听听听听听听听听听听听听 प्रसुप्तां मां तदा त्याक्षीश्चिराद् दृष्टोऽसि वल्लभ / क्वाधुना यास्यसीत्युक्त्वा धृत्वा नीतो गृहान्तरे।।८६०॥ अन्वयः- हे वल्लभा तदा त्वं प्रसुप्तां माम् अत्याक्षी: / चिरात् दृष्टः असि / अधुना क्क यास्यसि, इति उक्त्वा धृत्वा गृहान्तरे नीत: // 860 // विवरणमः हे वल्लभा हे प्रिय। तदा त्वं प्रसुप्तांशयितां माम् अत्याक्षी: अत्यजः। चिरात् बहो: कालात् अनन्तरं दृष्टः असि। अधुनाव कयास्यसि गमिष्यसि? इति उक्त्वा दृत्वा च स: गृहस्य अन्तरे - गृहान्तरे नीतः। इत्युक्त्वा तं कुब्जं धृत्वा दमयन्ती ग्रहान्तरे अनयत् / / 860 // सरलार्थ:- हे वल्लभा दता त्वं सुप्तां माम् अत्यजः / अधुना चिरात् दृष्टः असि। इदानी छ वास्यसि। इति उक्त्वा दमयन्ती तं गृहीत्वा गृहान्तरे अनवत् / / 86ol

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