Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

View full book text
Previous | Next

Page 775
________________ areliners ResearSHRestadasagas श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् ARARIATRogana પક ગુજરાતી - કહ્યું છે કે, જ્યાં પ્રયોજન હોય, તે દિશામાંથી આવેલો કાગડો પણ હર્ષ ઉપજાવે છે, ત્યારે ત્યાંથી મોકલેલા પુરુષ માટે तोवून धुं?1003॥ हिन्दी:- कहते हैं कि जहाँ प्रयोजन है, उस दिशा से आने वाले कौए का समागम भी हर्षित करता है, तो फिर वहाँ से भेजे हुए मनुष्य के लिए तो कहना ही क्या? // 803|| मराठी:- म्हणतात कि जेथे प्रयोजन असते, त्या दिशेमधून आलेला कावळा पण हर्ष उत्पन्न करतो. तर मग तेथून पाठविलेल्या पुरुषांबदल काय सांगावे? तो तर आनंद देणारच / / 803 / / , English :- As it is said that even crows are welcomed from the place, from where, one tenders a special interest and purport. So if crows can be welcomed than what can one say of human beings? जगाम कुशलेनाथ कुशल: कुण्डिनम्पुरम्॥ सर्व भीमाय कुब्जस्य स्वरुपं चन्यरुपयत् / / 804 // अन्वयः- अथ कुशल: कुशलेन कुण्डिनं पुरं जगाम / कुब्जस्य सर्व स्वरुपं च भीमाय न्यरुपयत् / / 804 // विवरणम्:- अथ अनन्तरं कुशल: कुशलेन क्षेमेण सुखेन कुण्डिनं पुरं जगाम ययौ। कुब्जस्य सर्व स्वरुपं वृत्तान्तं भीमाय वैवर्भाय न्यरुपयत् न्यवेदयत् // 804 // सरलार्थ:- अनन्तरं कुशलः कुशलेन क्षेमेण कुण्डिनं नगरं जगाम / तत्र कुब्जस्य सर्व वृत्तं भीमाव नृपाव न्यवेदयत् / / 804 / / ગુજરાતી:- પછી તે કુશલ ક્ષેમકુશળ કુંડિનપુર ગયો, તથા તેણે તે કુજનું સઘળું વૃત્તાંત ભીમરાજને જણાવ્યું.૮૦૪ हिन्दी :- फिर वह कुशल कुशलपूर्वक कुंडिनपुर गया। उसने भीमराजा को उस कुब्ज का सब - वृत्तांत कह सुनाया||८०४॥ मराठी:- नंतर तो कुशल सुखरूप कुंडिनपुरला गेला आणि त्याने त्या कुब्जाचा सगळा वृत्तांत भीमराजाला सांगितला. // 804|| English - Then Kushal left for his city with utmost happiness and dexterity. On reaching he nassated to King Bhim the whole biography of the hunch-back. PRATEELESEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE

Loading...

Page Navigation
1 ... 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915