Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 785
________________ APPRPRIVerseersNeases श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् S ResearesensesandrvangaPATRO EFFE सरलार्थ:- तद्द्तस्य वचनमाकर्ण्य दधिपर्णः अचिन्तयत् - दमयन्ती मम अतीव प्रिया अस्ति / परमहं प्रभाते तत्र कथ गमिष्यमि? पक्षी 卐 भवेयं चेत् गच्छेयम् / / 816 // : ગુજરાતી:- તે સાંભળી તેણે વિચાર્યું કે, દમયંતી તો મને અત્યંત વ્હાલી છે, પરંતુ આવતી કાલે સવારે હું ત્યાં શી રીતે જઈ શકીશ? જે હું પક્ષી હોઉં તો ત્યાં જઈ શકું.૮૧૬ हिन्दी :- यह सुनकर उसने विचार किया कि, दमयंती तो मुझे अत्यंत प्रिय है, लेकिन कल प्रभात में ही मैं वहाँ किसप्रकार जा सकूँगा? यदि मैं पक्षी होता तो वहाँ जा सकता।।८१६॥ . मराठी:- ते दृताचे वचन ऐकून त्याने विचार केला की, दमयंती तर मला अत्यंत प्रिय आहे, परंतु उया सकाळीच मी तेथे कसा जाऊ शकेन. मी जर पक्षी झालो तर तेथे जाऊ शकेन. English - Then the king began to wonder that its no doubt that he loves Damyanti profusely, but how could he reach his destination by dawn as he was not a bird who could fly to its destination. 騙騙騙騙騙騙騙騙騙騙騙騙騙喝騙騙 EEEEEEEECHE तध्यौ कुब्जोऽपि वैदर्भी न स्वशीलं विलुम्पति॥ अपि मुञ्चन्ति मर्यादांचेद् युगान्तेपि वार्धयः॥८१७॥ अन्वयः- कुब्ज: अपि दध्यौ - वार्धय: अपि युगान्ते मर्यादां मुञ्चन्ति चेत् वैदर्भी स्वशीलं न विलुम्पति // 817 // विवरणम्:- कुब्ज: अपि दध्यौ चिन्तयामास * वार्धय: सागरा: अपि कदाचित् युगस्य अन्त: युगान्त:, तस्मिन् युगान्ते प्रलयकाले मर्यादांमुञ्चन्तित्यजन्ति। परंवैदर्भस्यापत्यं स्त्री वैदर्भी विदर्भराजपुत्रीदमयन्तीस्वस्यशीलं स्वशीलं कदापिन विलुम्पति // 817 // सरलार्थ:- कुब्जः अपि व्यचारवत् - कदाचित् प्रलयकाले सागरा: अपि मर्यादां त्यजेयुः। परं विदर्भराजपुत्री दमयन्ती कदापि स्वशीलं न विलुम्पेत् // 817||

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