Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust

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Page 712
________________ OROGRABARABANARASRANA श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् SANGRAHARASHTRANSATTA विवरणम:- ततः सा दमयन्ती नभ: आकाशं लक्ष्यीकृत्य आकाशे दृष्टिं दत्त्वा आह स्मब्रवीति स्म। नाथा वनं निर्मानुष मनुष्यरहितं अस्ति / अहंभीरु: कातरा एका एकाकिनी च अस्मि। अत:शीघ्रम् एहि एहि आगच्छ आगच्छ। अतिशयेननर्म अतिनम, तेन अतिनर्मणा अतिपरिहासेन अलम् // 73 // सरलार्य:- ततः सा दमयन्ती अवकाशे दृष्टिं दत्त्वा ब्रवीति स्म नाथा इदं नवं निर्मानुषमस्ति / अहमेकाकिनी भीरुः च अस्मिा अत: शीग्रमागच्छ आगच्छ। अतिनर्मणा अलम् / / 731 // . ગજરાતી:- પછી આકાશ તરફ દષ્ટિ કરીને બોલી કે, તેનાથી આ જંગલ મનુબ વિનાનું છે, અને હું અહીં એકલી કરું છું માટે (भो)ो ? आपो? sisii ३२१ाधी छोडो.॥७३१॥ हिन्दी:- फिर आकाश की ओर देखकर बोली कि, "हे नाथ यह जंगल मानवरहित है और मैं यहाँ अकेली भयभीत हो रही हैं, इसलिये आओ! आओ! अब ज्यादा मजाक ठीक नहीं।"||७३१॥ मराठी:- नंतर ती आकाशाकडे दृष्टि (नजर) करून म्हणाली की, "हे नाथा हे जंगल निर्मनुष्य आहे, आणि मी येथे एकटी भीत आहे म्हणून (तुम्ही) वा? वा? आता जास्त गम्मत करू नका."||७३१|| English - Then Damyanti turned towards the sky and addressing her beloved Nal, asked him to retum fast, and stop playing a joke on her as this jungle is without any humanbaings and so she is very frightened of this solitary life. श्रुत्वा प्रतिखम्भूय: आकाशे मां ब्रवीषि किम् // असावहमुपैमीति रभसेन प्रधावति॥७३२॥ अन्वय:- भूय: आकाशे प्रतिखं श्रुत्वा मां किं ब्रवीषि? असौ अहम् उपैमि इति रभसेन प्रधावति // 732 // विवरणम्:- भूयः पुन: आकाशेगगने प्रतिगत: ख: प्रतिख: तं प्रतिखं प्रतिध्वनिं श्रुत्वा आकर्ण्य मां किं ब्रवीषि वदसि? असौ अहम उपैमि उपयामि इति उक्त्वा सारभसेन वेगेन प्रधावति // 732 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S.

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