Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust
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________________ Kamsuesdepedapadapade श्रीजयशेखरसरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम Pandscapdrasendrasadla OPE HALFALFSELEFFFFFFFER सखि चक्रप्रिये सद्य: प्रियं नाख्यासि किं मम॥ प्रत्यक्षमेव ते नित्यं दु:ख प्रिय वियोगजम्॥७२२॥ अन्वयः- सखि| चक्रप्रिये! त्वं मम प्रियं सद्य:न आख्यासि किम् / प्रियवियोगजं दु:खं ते नित्यं प्रत्यक्षमेव अस्ति // 722 // विवरणम:- हेसखि चक्रप्रिये। चक्रवाकि त्वं मम प्रियं प्रियोदन्तं सद्य:शीघ्रं किंनकथयसि? प्रियस्य विरह: प्रियविरहा। प्रियविरहात् जायते इति प्रियविरहजं दुःखं ते तव नित्यमेव प्रत्यक्षमस्ति // 722 // सरलार्थ:- हे सरिख। चक्रप्रिये। त्वं मम प्रियोदन्तं शीग्रं किं न कथयसि / प्रियविरहात जायमानं दःख तु तव नित्यमेव प्रत्यक्षमस्ति ||722 / ગુજરાતી:- સખીચવાકી! મને તું મારા સ્વામીનું વૃત્તાંત કેમ તુરત કહેતી નથી? તને તો સ્વામીના વિયોગથી થતું દુઃખહમેશાં IRAN (ruj) छ.॥७२२॥ 卐 हिन्दी :- "हे सखी चक्रवाकी! तू मुझे मेरे स्वामी का वृत्तांत जल्दी क्यों नही बताती? तुझे तो प्रियवियोग का दुःख हमेशा प्रत्यक्ष ही है॥७२२॥ मराठी :- हे सखी चक्रवाकी। मला त् माझ्या स्वामीचा वृत्तांत का बरं लवकर सांगत नाही तुला तर स्वामीच्या वियोगाने होणारे दुःख नेहमी प्रत्यक्षच आहे."॥७२॥ English :-Damyanti addressing the ruddy-goose as a friend asked her as to why she does'nt tell her about the whereabouts of her husband, as she was cognizable by sight to all the torments she had gone through. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust