Book Title: Nal Damayanti Charitrayam
Author(s): Jayshekharsuri, Sarvodaysagar
Publisher: Charitraratna Foundation Charitable Trust
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________________ Awarenka test श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलवमयन्तीचरित्रम् SRISAddres s अलमालप्य चान्यत्वं, व्रज पन्थाः शिवस्तव // सोऽयं रूपं प्रकाश्य स्वं, नत्वा तां मुदितोऽगमत् // 371 // अन्यय:- अन्यत् आलप्य अलम् / त्वं व्रजा तव पन्था: शिव: भवतु। अथ स स्वं रूपं प्रकाश्य तां नत्वा मुदित: अगमत् // 37 // विवरणम् :- अन्यत् आलप्य अलम् / अन्येन आलापेन अलम् | त्वं व्रज गच्छा तव पन्थाः मार्ग: शिव: कल्याण: भवतु। अथ स: राक्षस: स्वं निजं रूपं प्रकाश्य प्रकटय्य तां दमयन्तीं नत्वा प्रणम्य मुदित: आनन्दित: अगमत् अगच्छत् // 37 // सरलार्थ :- अन्येन आलापेन अलम् / त्वं गच्छ। तव मार्ग: कल्याण: अस्तु / अथ स राक्षस: निजं रूपं प्रकाश्य तां दमयन्तीं नत्वा आनन्दित: अगच्छत् / / 371|| ગુજરાતી - હવે બીજું કંઈ કહેવાથી સર્યું, તું જા! તારો માર્ગ કલ્યાણકારી થાઓ પછીતે રાક્ષસ પણ પોતાનું રૂપ પ્રકાશીને તથા તેણીને નમીને ખુશી થઈ (ત્યાંથી) ચાલતો થયો. 371 हिन्दी :- 'अब और अधिक क्या कहना, तुम जाओ. तुम्हारा मार्ग कल्याणकारी हो।' तब वह राक्षस अपना रूप प्रगट कर के उसके सामने नतमस्तक होकर वहाँ से चला गया / / 371 / / 1:- आता दुसरे काही बोल नहोस तू जा. तुझा मार्ग कल्याणकारी होवो. नंतर तो राक्षस पण आपले रूप प्रकट करून तिला नमस्कार करून आनंदित होऊन तेथून निघून गेला. // 371 / / English :-And she askes the Goblin not to say anything more and let his way be friendly and auspicious. Then the goblin bought to light his actual form, bowed down to her, accumulated blissful feelings in his heart and vanished away from there. मराठा