________________
उत्पातप्रकरणम्
अन्यायकुसुमाचारौ पाखण्डाधिकता जने । सर्वमाकस्मिकं जातं वैकृतं देशनाशनम् ॥ २१ ॥ प्रावृष्यैन्द्रं धनुर्दुष्ट नाहि सूर्यस्य सन्मुखम् । रात्रौ दुष्टं सदा शेष - काले वर्णव्यवस्थया ॥ २२ ॥ सित-रक्त-पीत- कृष्णं सुरेन्द्रस्य शरासनम् । भवेद् विप्रादिवर्णानां चतुणी नाशनं क्रमात् ॥ २३ ॥ काले पुष्पिता वृक्षाः फलिताश्चान्य भूभुजे । अल्पेऽल्पं महति प्राज्यं दुर्निमित्तैः फलं वदेत् ॥ २४ ॥ अश्वत्थोद्स्थरचटू-लक्षाः पुनरकालतः । विपक्षत्रियविट्शूद्र वर्णानां क्रमतो भिये ॥ २५ ॥
आदि मैं अग्नि का उपद्रव हो तो राजा को भय उत्पन्न होता है, और शत्रु ज्वलायमान देखनडे या सर्प म्यान में से बाहर निकल पड़े तो संत्रास होता है | २० | जब लोगों में अन्याय दुराचार और धूर्तता अधिक देखाड़े और अस्तात् सब रीति रिवाज विपरीत होजाय, तब देश का नाश होता है ॥२१॥ वर्षाकाल में इन्द्रधनुष दिन में सूर्य के संमुख देखपड़े तो दोष नहीं है, मगर वह रात्रि में देखड़े तो अशुभ ज्ञानना, और बाकी के समय देखाड़े तो रंग के अनुसार शुभाशुभ जानना ॥ २२ ॥ वह इन्द्रधनुष सफेद, लाल, पीला और कृन्य रंग के समान देखपड़े त क्रम से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र इन का विनाश होता है ॥ २३ ॥ यदि अकाल में [ चिना ऋतु ] वृक्षों में फल फूल आजान तो राज्य परिवर्तन होता है । दुष्ट निमित्त अल्प हो तो अल्प और अधिक हो तो अधिक फल कहना ॥ २४ ॥ पीपल, गूलर, बरगद (वड ), लक्ष ये चार वृक्ष अकाल में फल फूल दें तो पसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैन और शूद्र, इन चार वर्णों को भय होता है ||२५|| वृक्ष के उपर वृक्ष, पत्र के उपर पत्र, फल के उपर फल और फूल के उपर फूल लगा हुआ देख
"
"Aho Shrutgyanam"