________________
१२ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ___ इन उपर्युक्त पाँच श्लोकोंसे मङ्गलाचरण किया तथा लँबेचू इतिहास प्रकाशित करेंगे। यह उद्देश्य बतलाया और संक्षिप्तमें यह भी विदित किया कि हमलोग श्री १००८ श्री नेमिनाथ स्वामी और कृष्ण महाराजके वंश यदुवंशकी सन्तान हैं और इस लँबेचू जोतिका प्राचीन शुद्ध सार्थक नाम लम्बकञ्चुक है, जिसका अपभ्रंश वर्तमानमें लँबेच है। इस विषयमें कोई शंका करेंगे कि तुमने अपनी जाति की प्रशंसाके लिये अपनी विद्वत्तासे लम्बकञ्चुक ऐसा नाम रख लिया है। पुराना नाम लम्बेच रूढ़िसे पुकारते आते हैं (लम्बकञ्चुक)। प्राचीन नाम है इसमें क्या प्रमाण है, इसलिये हम आपलोगोंके समक्ष ऐतिहासिक प्रबल प्रमाण उपस्थित करते हैं। वह यह है कि प्राचीन प्रसिद्ध शहर (प्रयाग) इलाहाबादके छोटे श्री जिन मन्दिरमें विक्रम संवत् १६४१ तथा संवत् १५६० के दो यन्त्र ताम्रपत्र पर है। एक श्री कलिकुण्ड यन्त्र है और दूसरा श्री दशलाक्षणिक यन्त्र है। ये दोनों लँबेच जातीय, सोनी गोत्र तथा बुढ़ले गोत्रके बनवाये व प्रतिष्ठा कराये हुए हैं। उन्हींकी प्रशस्ति इस प्रकार है