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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * उपर्युक्त मङ्गलाचरणके ५ श्लोकोंका क्रमशः भावार्थ
श्रीमान् शुद्ध क्षत्रियाधिपति छप्पन कोटि यादवोंके प्रभु त्रिलोक पूज्य श्री १००८ श्री नेमिनाथ जिनराज इस जगत्में जयवन्त रहैं ॥१॥
ऐसे श्री नेमिनाथ स्वामीके चरण-कमलोंको नमस्कार कर अथवा श्री नेमिनाथ स्वामीके चरणोंका स्पर्श करनेवाले अपने हृदय कमल पुष्पको इस मनोहर इतिहास माला. लतिकामें लगाकर शुभ वचनोंसे गूंथी हुई सुशोभित पुष्प जातीय-शिक्षाओंके हरे-भरे पत्रोंसे उल्लासमान श्री लम्बकञ्चुक शुभवंश इतिहास लेखमाला जातीय पुराण पुरुषोंसे प्रेरित हो मेरे द्वारा लिखी जाती है ॥२॥ ___ यह लम्बकञ्चुक वंश ( लंबेचू जाति ) अन्वर्थ संज्ञाको रखता है अर्थात् यौगिक इसका सार्थक नाम इस प्रकार है कि जिस वीरके पास युद्धके समय वीरोंके पहनने योग्य लम्ना कवच हो अर्थान् लंबी झूल लम्बा अँगरखा हो (कवच लोहेके तारांका गूंथा हुआ होता है), उस वीरको लम्बकञ्चुक कहते हैं और जिस जातिमें ऐसे वीर पुरुष हुए हों, उस जाति या उस वंशको भी लम्पकञ्चुक कहते हैं।