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८ * श्री लॅबेचू समाजका इतिहास - असाधारण कारण ( जिसके बिना कार्य न हो) है यदि संसारमें कृतज्ञता न रहै तो परस्पर उपकार हिताचरण न रहै । और हिताचरणके न होनेसे अहिताचरण बढ़ जावै तो संसारके कार्य ही नहीं होशक्त प्रत्येक कार्यमें (काममें) हर एकको एक दूसरेके अवलम्बन लेने पड़ते हैं। तब कार्य सिद्धि होती है। जैसे एक पान्थ (रस्तागीर) किसी मार्ग जाननेवाले पुरुषसे मार्ग पूछता है । यदि मार्ग जाननेवालेके परोपकार बुद्धि न हो और पूछनेवालेके कृतज्ञता न हो तो वह पान्थ कभी यथेष्ट स्थानपर नहीं पहुँच सकता। यद्यपि चाहे वह मुखसे कृतज्ञता न प्रकट करै । परन्तु पान्थका हृदय इच्छित स्थान पर पहुंचते ही अवश्य कहेगा। कि मार्ग ठीक बताया यह कृतज्ञता ही मार्ग दर्शकके हृदयमें परोपकार बुद्धि उत्पन्न करती है और परोपकार बुद्धि उस पान्थके हृदयमें कृतज्ञता उत्पन्न करती। इन दोनोंमें अविनाभाव सम्बन्ध है। अर्थात कृतज्ञता किये हुये उपकारको मानना। सराहना प्रशंसा करना और उपकार ये दोनों एक दूसरेके सहारे जीते हैं। जबतक संसारमें उपकार रहेगा। तबतक कृतज्ञता अवश्य रहेगी। और कृत