Book Title: Lavechu Digambar Jain Samaj
Author(s): Zammanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jain Calcutta

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Page 13
________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * शास्त्रकी प्ररूपणा कर प्राणीमात्रका हितमार्ग बिना इच्छा ही दिखाया उस परमइष्ट श्रीअरहंत भगवान्का नमस्कार रूप मङ्गलाचरण करना प्रत्येक लौकिक व पारमार्थिक कार्यमें अत्यावश्यक है यद्यपि नैय्यायिक वैशेषिकादि अजैन ग्रन्थों में कार्य समाप्ति विन धंसादि मङ्गलाचरणका फल बतलाया है अर्थात् मङ्गलाचरण करनेसे कार्य पूरा होता है तथा विनोंका नाश होता है ऐसा कहा है परन्तु कार्य समाप्ति तथा विनोंका नाश पूरी २ सामग्रीका मिलना आदि कारणोंसे भी होता । दूसरे उनके यहाँ मङ्गलाचरण करनेपर भी कादम्बरी आदि ग्रन्चोंकी परी समाप्ति न हुई और नास्तिकादि ग्रन्थोंकी मङ्गलाचरण न करने पर भी ग्रन्थ समाप्ति देखी गई। इसलिये कार्य कारणकी ब्याप्ति घटित न हुई अव्याप्ति अति व्याप्ति दूषण दूषित हुई उनका हेतु मङ्गलाचरण असाधारण कारण नहीं ठहरता यद्यपि पूर्ण सामग्रीका मिलना तथा दान आदि शुभाचरण वाह्य विनोंको दूर कर सकते हैं। परन्तु कृतघनता रूपी पापको दूर करनेमें असमर्थ हैं। समर्थ नहीं ! कृतघ्नता दूर करनेवाला तो, इष्ट नमस्कारात्मक कृतज्ञता रूप शुभ परिणाम ही

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