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*श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ज्ञता रहेगी तो उपकार अवश्य रहेगा। यदि दोनोंमेंसे जहाँ एक नष्ट होगा, वहाँ दोनों नष्ट होंगे, और उपकार तथा कृतज्ञता दोनों न रहैं। तब कोई कार्य ही संसार या परमार्थका नहीं चल सकता। क्योंकि उपकार और कृतज्ञता न रहने पर कोई सहायक न होगा। और सहायक (सहकारी कारण) बिना कोई काम न होगा। कारण बिना कार्य कभी नहीं होता। यह नियम है बहुत कारण मिलकर एक कार्य होता है उनमेंसे एक कारण भी बिगड़ने पर कार्य नहीं होता। जैसे रेलगाड़ीका एक भी पुर्जा खराब होनेपर गाड़ी नहीं चलती, इसलिये उस शुद्ध-बुद्ध चैतन्य समस्त चराचर वस्तुको देखने जाननेवाला तथा हितोपदेशी परमगुरु सकल परमात्मा अरहंतदेवका स्मरण करना प्रथम कर्तव्य है ऐसा मनमें धार इस लॅवेच इतिहासके प्रारंभमें लम्बेच जाति वंशधर हरिवंश शिरोभूषण त्रैलोक्य चूड़ामणि परम पूज्य जगत् पितामह परम शुद्ध निजान्तस्तत्व निलीन शुद्ध परमात्मा भगवान् २२ वें तीर्थङ्कर श्रीनेमिनाथ अरहंत देवके चरणकमलोंका ध्यान कर इस इतिहासका प्रारंभ करता हूँ।