Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलासहिदे कसायपाहुहे
[वेवगो. ओघेण मिच्छ०-सम्म-सोलसक०-रावणोक. उदीर अणुदीर० णिय० अस्थि । सम्मामि० सिया सव्ये अणुदोर०, सिया अणुदीरगा च उदीरगो च, सिया अणुदीरगा च उदीरगा च ३।
५६. श्रादेसेण णेरइय० ओघं | गवरि इथिवे.-पुरिस० उदीर० णस्थि । णस० उदीर० णियमा अस्थि । एवं सव्वणेरइय० । तिरिक्खेसु ओघं । पंचिंदियतिक्खितिए ओघं । णवारि पजचएस इस्थिवेदों णस्थि । जोणिणी० पुरिस०-णस. पत्थि । इथिवे. उदारीकणियाचा प्रात्य, अणुदारगाणावा पंचिंदियतिरिक्सअपन मिच्छ०-रावूस. सव्वे उदरिया, अणुदीरया णस्थि । सोलसक०-छण्णोक० उदीर० अणुदीर० गिय० अस्थि । मणुसतिए ओघ | - णवरि पजत्तएसु इत्थिवे. णस्थि० । मणुसिणी० पुरिस०-णस० एथि । इथिवे. सिया सव्वे जीवा उदीरंगा । एवं तिण्णि भंगा। मणुसअपज० मिच्छ०-णQस० सिया उदीरगो, सिया उदीरंगा । सोलसक०-छएणोक० अट्ट भंगा। देवेसु श्रोधं । णवरि एएस० अणुदी० । एवं भवण-वारण०-जोदिसि०-सोहम्मीसाण. । एवं सणकुमारादि जाव णवगेवजा त्ति । णवरि इस्थिवे. उदीरगा णस्थि । पुरिस० णिय० उदीर०, अणुदीर० पत्थि ।
और श्रादेश। ओघसे मिथ्यात्व, सन्यक्त्व, सोलह कपाय और नौ नोकषायोंके उदीरक और अनुदीरक जीव नियमसे हैं। सम्यग्मिथ्यात्वके कदाचित् सब जीव अनुदीरक होते हैं । कदाचित् नाना जीव अनुदीरफ होते हैं और एक जीव उदीरक होता है। कदाचित् नाना जीव अनुदीरक होते हैं और नाना जीव उदीरक होते हैं. ३ ।।
६५६. श्रादेशसे नारकियों में श्रोधके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उदीरक जीव नहीं हैं। नपुंसकवेदके उदीरक जीव नियमसे हैं। इसीप्रकार सब नारकियों में जानना चाहिए। तिर्योंमें अोधक समान भंग है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें ओषके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि तिर्यश्च पर्यासकोंमें लीवेदकी उदारणा नहीं होती। योनिनी तिर्यों में पुरुपवेद और नपुंसकवेदकी उदीरणा नहीं होती। इनमें स्त्रीवेदको उदीरणा नियमसे होती है। इसके अनुदीरक नहीं है। पश्चेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके सब जीव उदीरक होते हैं। इनके अनुदीरक नहीं हैं। सोलह कषाय और छह नोकपायोंके उदोरक और अनुदीरक नाना जीव नियमसे होते हैं। मनुष्यत्रिकमें ओघके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्य पर्याप्तकों में नोवेदकी उदीरणा नहीं होती। तथा मनुष्यिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी उदारणा नहीं होती। स्त्रीवेदके कदाचित् सब जीव उदीरक होते हैं। कदाचित् नाना जीव उदीरक और एक जीव अनुदीरक होता है। कदाचित् नाना जीय उदीरक और नाना जीव अनुदोरक होते हैं। इस प्रकार तीन भंग होते हैं। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व और नपुंसकवेदका कदाचित एक जीव उदीरक होता है। कदाचित् नाना जीव उदीरक होते हैं। सोलह कषाय और छह नोकषायोंकी अपेक्षा आठ भंग हैं। देवोंमें ओघके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदकी उदीरणा नहीं होती। इसीप्रकार भवनवासी, ज्यन्तर, ज्योतिषी, सौधर्म और ऐशान देवों में जानना चाहिए । सनत्कुमारसे लेकर नौ प्रवेयक तफके देवों में भी इसीप्रकार जानना चाहिए। किन्तु इनमें स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं होती। इनमें पुरुषवेदके उदीरक नियमसे होते