Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 333
________________ ३२० जयधवालासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो. माग इद्विस्स सम्माइटिस्स बा . आचार्य श्री सुविहिासागर जी महाराज ७१२. श्रादेसेण णेरइय० मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-सोलसक०-सत्तणोक० ओयं । णवरि णस० अवत्त० णस्थि । तिरिक्खेसु भो । णवरि तिण्णिवे. अवत० मिच्छाइद्विम्स । एवं पंचिदियतिरिक्खतिए । णवरि पजत्तएसु इस्थिवेदो यत्थि | जोणिणीसु पुरिसवे०-णस० णस्थि । इत्थिवे. अवत्तव्यं च गस्थि । पंचिंतिरि०अपज०-मणुसअपज. सधपयडी. सव्वपदा कस्स ? अण्णद० । मणुसतिए ओघं । णवरि पञ्जत्तएस इस्थिवेदो णस्थि । मणुसिणी० पुरिसवे०-गस० स्थि । इथिवे. अवत्त० कस्स ? अण्णद० सम्माइविस्स ।। ७१३. देवेसु सत्तावीसपयडी० ओघं । णचरि इस्थिवे०-पुरिसके० अवत्ता णस्थि । एवं भवण-वाण-०-जोदिसि०-सोहम्मीसाणा ति। एवं सणकुमारादि सहस्सारा ति । णबरि इथिवे. णस्थि । प्राणदादि गवगेवज्जा ति मिच्छ०अणंताणु०४ अप्प०-अवत्त० कस्स ? अण्णद० मिच्छाइद्वि० | सम्म० भुज०-अप्प.. अवस० कस्स०१ अण्णद० सम्मा० । सम्मामि० ओथं । वारसक०-छपणोक० अप्पा प्रवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव कौन हैं ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि जीव नदीरक हैं। ६७१२. प्रादेशसे नारकियामें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायका भंग भोधके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें नपुंसकवेदकी श्रवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव नहीं है । तिर्यकचामें ओरके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें तीन घेदकी श्रवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव मिथ्या दृष्टि हैं। इसीप्रकार पञ्चेन्द्रिय तियश्चत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकों में स्त्रीवेदकी उदारणा नहीं है और योनिनियों में पुरुषवेद तथा नपुसकवेदकी उदीरणा नहीं है। सथा इनमें स्त्रीवेदके उदीरकोवा प्रवक्तव्यपद नहीं है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृनियोंके सब पदोंके उदीरक जीव कौन हैं ? अन्यतर जीव उदीरक हैं। मनुष्यत्रिको ओधके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है तथा मनुष्यिनियों में पुरुषवेद और नपुसकवेदकी उदीरणा नहीं है। मनुष्यनियों में खोवेदकी प्रवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव कौन हैं ? भन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव उदीरक हैं। ७२३. देवोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंका भंग अोधके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदको अबक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव नहीं हैं। इसीप्रकार भवनवासी, न्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म और ऐशानकल्पके देवोंमें जानना चाहिए। इसीप्रकार सनत्कुमारसे लेकर सहस्रारकल्पतकके देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेदकी उदारणा नहीं है। पानत कल्पसे लेकर नौ अवेयकतकके देवोंमें मिथ्यात्व और अनन्सानुबन्धोपसुष्ककी अल्पतर और प्रवक्तध्यस्थितिके उनीरक जीव कौन हैं ? अन्यवर मिध्यादृष्टि जीव उदारक हैं। सम्यक्त्वको भुजगार, अल्पतर और श्रवक्तव्य स्थिसिके उदीरक जीव कौन हैं अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव उदीरक हैं । सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है।

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