Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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अयधवासहिदे कायपाहुडे
मिच्छ०
भुज० डिदिउदी० एयस०, उक्क ०
$ ७१८. पंचिदियतिरिक्ख अपज० - मणुस अपज० जह० एस० उक० चत्तारि समया । अप्प० - श्रवट्टि० जह० तोमु० | एवं पुंस० । णवरि भुज० जह० एस० उक० एगूणत्रीसं समया । एवं सोलसक० छण्णोकः । णरि अवत्त० जह० उक० एयसमत्रो |
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६७१९. मणुमतिए पंचिदियतिरिक्खतियभंगो। णवरि सम्म० अप्प० जह० अंतोमु० । पञ्जत० सम्म० अप्प० जह० एस० । मसिरणी० इस्थिवे० श्रवत्त० जद्द० उक० एस० ।
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[ वेदगो
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१७२०. देवदेवे पिढमढविगो । वरि मिच्छ० प० जह० एस० उक्क० एकतीसं सागरोमाणि | इस्स-रदि० भुज० जह० एयस०, उक्क० अट्ठारस समया । अध्य० जह० एम०, उक्क० छम्मासं । श्ररदि-सोगाएँ भुज० जह० यस०, उक्क० सत्ताइस समया। सम्म० श्रर्घ । वरि
७१८. पचेन्द्रिय तिर्यख अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिथ्यात्वकी भुजगार उदीरणाका जघन्य काल एक समय है, और उत्कृष्ट काल चार समय है । अवतर और अवस्थित स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके भुजगार स्थितिउदीरणका अनम्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल उन्नीस समय है । इसीप्रकार सोलह का और वह नोकषायकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
३७१६. मनुष्यत्रिक पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक के समान भंग है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । मनुष्य पर्याप्तकों में सम्यक्त्व की अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है । मनुष्यिनियोंमें स्त्रीदकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
विशेषार्थ उत्तम भोगभूमिकी अपेक्षा मनुष्य पर्याप्तकों में सम्यक्त्वकी अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय बन जाता है, क्योंकि जो मनुष्यनी क्षायिक सम्यक्त्वको उत्पन्न कर रही हैं उसके सम्यक्त्वकी उदीरणामें एक समय शेष रहने पर मरकर वहाँ के मनुष्य पर्याप्तकों में उत्पन्न होनेपर यह काल प्राप्त होता है तथा उपशमश्रेणिकी अपेक्षा मनुष्यिनियोंमें स्त्रीवेदकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय चन जाता है। शेष कथन सुगम है ।
१७२०. देवगति में देवों में मिध्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकपायका भंग प्रथम पृथिवीके समान है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व की अल्पत्तर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल इकतीस सागर हैं। हास्य और रतिकी भुजगार स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल अठारह समय है । अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह महीना है । अरति और शोककी
१. ता००मा० प्रत्योः उक्त० देवमदीप इति पाठः ।
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