Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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अयथबलासहिदे कसायपाहुडे
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देसूणाणि ।
१७९२. पंचि०तिरिक्खप्रपत्र ०- मणुस अपज० मिच्छ० - सोलसक० - सत्तणोक० असंखे० भागवडि० जह० एयस०, उक्क० बेसमया सत्तारस समया । असंखे ० भागहाणिअवडि० जह० एयस०, उक्क० तोमु० | संखे० गुणवष्टि० जह० एयस० उक० बेसमया । सेपदाणं जह० उक्क० एस० ।
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६ ७९३. मणुसतिय० पंचिदियतिरिक्खतियभंगो । वरि जासि पयडी असंखे० गुणहारिणः स्थि तामि जह० उक्क० एस० । णवरि सम्म० श्रसंखे० भागहा ० जह० अंतोमु०, उक्क० तिष्णि पलिदो० देखणाणि । पजत्त० इथिवे० णत्थि । सम्म० असंखे ० भागहाणि० जह० एयस०, उक्क० तं चैव । मणुसिणी पुरिसवे ० - र्पुस ० त्थि | इथिवे अवत्त० जहण्णुक्क० एगस० ।
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७९४. देवेषु मिच्छ० सोलसक० छण्णोक० सम्मामि० पढम पुढ विगो | वरि मिच्छ० असंखे० भागद्दा० जह० एयस० उ० एकतीसं सागरो० । हस्स-रदिअसंखे० भागहाणि० श्रधं । इत्थवेद - पुरिसवे ० हस्तभंगो । वरि अवत० रात्थि । असंखे० भागहाणि० जह० एस० उक्क० पलवर पलिदो० देणाणि तेत्तीसं असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य है । मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
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६७२२. पश्चेन्द्रिय तिर्यन अपर्याप्त और मनुष्य अर्यामकामें मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायकी असंख्यात भागवृद्धि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल मिथ्यात्वका दो समय तथा शेष का सत्रह समय है । असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिउदीरणाका जवन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त हैं । संख्यात भागवृद्धि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । शेष पदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
१७८३. मनुष्यत्रिक में पश्चेन्द्रिय तिर्यवत्रिक के समान भंग है। इतनी विशेषता है कि जिन प्रकृतियोंकी असंख्यात गुणहानेि स्थितिउदीरणा है उनका जघन्य और उत्कृष्ट फाल एक समय है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम दीन पल्य है। पर्याप्तकोंमें लीवेद नहीं है । इनमें सम्यक्त्वकी असंख्यात भागद्दानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल बड़ी हैं। मनुष्यिनियम पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं हैं। इनमें स्त्रीवेदकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
७४. देवों में मिध्यात्व, सोलह कषाय, वह नोकषाय और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग प्रथम पृथिवीके समान है। इतनी विशेषता है कि मिध्यात्वकी असंख्यात भागहानि स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल इकतीस सागर हैं। हास्य और रतिकी असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका काल ओोधके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भंग हास्य के समान है। इतनी विशेषता है कि इनकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है । असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल क्रमशः