Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 391
________________ or-....--------- ३५८ अयधवलासहिदे कसायपाहुबे [ वेगो. अणुदिसादि अवराजिदा ति सबपरडीणं सधपदा० के० १ असंखेजा। णवरि मम्म० अवत्त० केति ? संखेजा । एवं जाव० ।। ६८१६. खेत्ताणु० दुविहो णिद्देसो-ओघेण प्रादेसेण य | ओषेण मिच्छ०पत्रुस असंखे०भागववि-हारिण-अवट्टि० केवडिखेत्ते ? सबलोगे । सेसपदा० लोग० असंखे भागे। एवं सोलमा शरणोधार्थ प्रावतार आलोपोन। सम्म०सम्मामि०-इस्थिवेद-पुरिसवेद. सव्वपदा० लोग. असंखे० भागे । एवं तिरिक्खा। सेसगदीसु सन्चपयडी० सव्वपदा० लोग० असंखे०भागे । एवं जाव० । ८१७. फोसणाणु० दुविहो णि-श्रोघेण श्रादेसेण य । अोघेण मिच्छ० असंखे०भागवडि-हागि-अबढि० के० फोसिदं ? सबलोगो । दोरड्डि-हाणि. लोग० असंखे०भागो अट्ठचोदस० सबलोगो वा। असंखे०गुणहाणि० लोग० असंखे भागो अढचोदस० । अवत्त लोग. असंखे० मागो अट्ठ-बारहचोद्दस० । एवं सोलसक-छण्णोक० । णवरि अवत्त सबलोगो। चदुसंज. असंखे गुणवडिसर्वार्थसिद्धिके देवोंमें अपनी-अपनी प्रकृलियोंके सब पदोंकी स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात है। अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देवमि सब प्रकृतियोंके सब पदोकी स्थितिके उद्दीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी प्रवक्तव्य स्थितिक उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । ८१६. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- प्रोध और आदेश | ओघसे मिथ्यात्व और नपुसकवेदकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिके उदीरक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सर्व लोकक्षेत्र है। शेष पद स्थितिके उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार सोलह कषाय भौर छह नोकपायकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनकी प्रवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीवोंका क्षेत्र सर्व लोकप्रमाण है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, खीवेद और पुरुषवेदके सब पदोंकी स्थिति के उदीरक जीवों का क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार सामान्य नियंत्रोंमें जानना चाहिए । शेप गतियों में सब प्रकृतियोंके सब पचोंको स्थितिके उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोको असंख्यात भागप्रमाण है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । ८.. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और प्रादेश। ओघसे मिथ्यात्यकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थिति के उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानि स्थितिके उदीरक जीवाने लोकके असंख्यातवे भाग तथा प्रसनालीके चौदह भागों से कुछ कम आठ भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातव भाग और प्रसनालीके चौदह भागीमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अबक्तव्य स्थितिके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा सनालीके चौदह भागोंमेसे कुछ कम आठ और बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार सोलह कषाय और छह नोकषायकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी श्रवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका

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