Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
View full book text
________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बेहगां - ८३६. अणुदिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म० असंख०भागहा. पत्धि अंतरं ! संखे०भागहाणि-अवत्त० जह० एगस०, उक० वासपुधत्तं । सबढे पलिदो० संखे०भागो । एवं पुरिसवे० । णवरि प्रवत्त० पत्थि । एवं बारसक०-लण्णोक० | परि अचत्त० जह० एयस०, उक० अंतोमु० । एवं जाव० ।
६८३७. भावाणुगमेण सव्वस्थ ओदइओ भावो ।
१८३८, अप्पाबहुआणु० दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । श्रोघेण मिच्छ०-चुंस० सम्वत्थो० असंखे गुणहाणि । अवत्त० उदीर० असंखेगुणा । संखे.गुणहाणि० असंखे०गुणा । संखे०भागहाणि० संखे०गुणा | संखेगुणवहि असंखे०गुणा। संखे भागवष्टि• संखे० गुणा। असंखे भागवड्डि. अणंतगुणा । अचट्ठि० असंखे० गुणा | असंखे० भागहारिण० संखे०गुणा ।
८३९. सम्मत्त० सवयोवा असंखेन्गुणहारिणः । अवढि० असंखे० गुणा । असंखे० भागवडि. असंखे.गुणा | संखेजगुणवड्डि० असंखे०गुणा । संखे०भागड्डि. संखे गुणा । संखे गुणहाणि. असंखेगुणा । संखे० भागहाणि० असंखे०गुणा ।
८३६. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिके उदीरकोका अन्तरकाल नहीं है । संख्यात भागहानि और अवक्तव्य स्थितिके उदीरकों का जघन्य अन्तर्गदर्षसमय भारभितरवषयमाप्रमाण है। सर्वार्थसिद्धिमें पल्य के संख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार पुरुपवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि इसकी प्रवक्तव्य स्थितिडदीरणा नहीं है। इसीप्रकार बारह कषाय और छह नोकषायकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनकी श्रवक्तव्य स्थिति के उदीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए।
६८३७. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र औदयिक भाव है।
FE३८. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व और नपुंसकवेदकी असंख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्ताक है। उनसे अवक्तव्य स्थितिक उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात गुणहानि स्थितिक उचारक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात भागहाभि स्थितिके वीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात गुणवृद्धि स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुग्ग हैं। उनसे संख्यात भागवृद्धि स्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात भागवृद्धि स्थितिके उरिक जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात भागहानि स्थिति के उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं।
१८३९. सम्यक्त्वकी असंख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात भागवृद्धि स्थिसिक उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात गुणवृद्धि स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात भागवृद्धि स्थिति के उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संस्शत गुणहानि स्थितिक उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनस संख्यात भागहानि स्थिति के उदीरक जीव