Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 404
________________ गा० ६२] उत्तरपयरिद्विदिउदीरणाप बढिविदिदीरणाणियोगहार ६९१ त्ति एवं चेव । णवरि मिच्छ-सोलमक०-सत्तणोक० संखे गुणवाटि-हाणि दो वि सरिसा | पंचिंदियतिरिक्खतिए पारयभंगो। णवरि इस्थिधे०-पुरिसवे० कपायभंगो । गस० मिच्छत्तभंगो । णवरि असंखे०गुणहाणि० पत्थि । पञ्जत्त० इस्थिवेदो गस्थि । णबुंसय० पुरिमवेदभंगो। जोणिणीसु पुरिस०-णस० पत्थि । इस्थिवे० अवत. णस्थि । पंचिंदियतिरिक्खअपञ्ज-मणुसअपज्ज. सोलसक०-छण्णोक. पंचिंतिरिक्खभंगो | एवं मिच्छ०-णधुम० । णवरि अवत्त० णस्थि । ...८४७. मणुसेस मिळू-णबुस० सम्वत्थोवा असंखे गुणहाणि० । अत्रत्त. संखागुणा । सेस पाँचदियतिरिक्खभगा । सम्मासम्मामि० ओघं । णयरि संखेजगुणं कायव्यं । वारसक०-छण्णोक० पंचिदियतिरिक्खभंगो। चदुसंजल० सम्वत्थो० असंखे गुणहाणि । संखे०गुणहाणि असंखे० गुणा । संखेनगुणवडि. विसेसाहिया। सेसं पंचितिरिक्खभंगो । इथिवे०-पुरिस० एवं चेच । परि संखे०गुणं कायव्यं । एवं मणुसपज० । गरि संखे गुरणं कायव्यं । णवरि इथिवेदो णस्थि । णधुस० पुरिस भंगो । मणमिणी० एवं चेव | णवरि पुरिस-णस० णस्थि । इथिवेद. इसीप्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व, सोलह कपाय और सात नोकषायकी संख्यात गणाधुद्धि और संख्यात गुणहानि इन दोनों स्थितियोंके जुदीरक जीव समान हैं । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिक, नारकियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुष बदका भंग कपायके समान है। नपुसकवेदका भंग मिथ्यात्षके समान है। इतनी विशेषता है कि असंख्यात गुणहानि स्थिति उदोरणा नहीं है। पर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है। नपुसकवेदका भंग पुरुपयेदके समान है। योनिनियों में पुरुषवेद और नपुसकवेद नहीं है । स्त्रीवेदका प्रवक्तव्य स्थिति उदारणा नहीं है। पञ्चन्द्रिय तिर्थश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सोलह कषाय और छह नोकषायका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है। इसीप्रकार मिथ्यात्व और नसकवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेपता है कि अवक्तव्य स्थिति उदीरणा नहीं है। ६८४७. मनुष्योंमें मिथ्यात्व और नपुसकवेदकी असंख्यात गुणहानि स्थिति के मदीरक जीव सबस स्तोक है । उनसे श्रवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। शेष भंग पंचेन्द्रिय तिर्यश्चांक समान है । सम्यक्त्व और सम्बग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणा करना चाहिए । घारह कपाय और छह नोकपायका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्योंके समान है। चार संज्वलनकी असंख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे संख्यात गुणहामि स्थितिक उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संरूयात गुगणवृद्धि स्थितिके उदीरक जीव विशेष अधिक हैं। शेष भंग पंचेन्द्रिय तियंवोंके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भंग इसीप्रकार है। इतनी विशेषता है कि संख्यासगुणा करना चाहिए। इसीप्रकार मनुष्य पर्याप्तकोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणा करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद नहीं है। नपुसकवेदका भंग पुरुषवेदके समान है । मनुष्यिनियों में इसीप्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पुरुपवेद और नपुसक ताप्रती एवं चेन । एवं इति पाठः ।

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