Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२] असरपयडिद्विदिउदीरणाए वढिविविउदीरणाणियोगदारं
८५०. अणुदिसादि सबट्ठा ति सम्म० सम्वत्थोवा अवत्तः । संखे०. भागहाणि असंखे०गुणा । असंखे० भागहाणि असंख० गुणा । वारसक-सत्तणोक० श्राणदभंगो । णवरि सबढे जम्हि असंखे गुणा तम्हि संखेनगुणं कादब्बं । एवं जाव० ।
___ एवं वडिउदीरणा समत्ता। ८५१. पत्थ हाणपरूयणे कीरमाणे द्विदि-संकमभंगो। णवरि अप्पप्पणो उकस्सविदिउदीरणमादि कादूण जाव अप्पुप्पणो उदीरणा-पानग्गजहण्णढिदिसंतकम्मे ति प्रोदारिय । तदो को कदमाए हिदीए पचेसगो ति पदस्स अत्थो समत्तो ।
गेण्ह्यिब्वं एवं द्विदिउदीरणा समत्ता ।
८५०. अनुदिशसे लेकर सार्थसिद्धितक देवोंमें सम्यक्त्वकी श्रवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे संख्यात भागहानि स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात भागहानि स्थितिके सदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। बारह कषाय और सात नोकषायका भंग पानतकल्पके समान है। इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धि में जहाँ असंख्यात गुणा है वहाँ संख्यातगुणा करना चाहिए। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए।
इसप्रकार वृद्धिजदीरणा समाप्त हुई।
F८५१. यहाँपर स्थानप्ररूपणा फरनेपर स्थितिसंक्रमके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थितिबदीरणासे लेकर अपने-अपने उदीरणा प्रायोग्य जघन्य सत्कर्मतक उतारकर ग्रहण करना चाहिए । इसके बाद 'को कदमाए हिदीए पवेसगो' इस पदका अर्थ समान हुश्रा।
इसप्रकार स्थिविदीरणा समाप्त हुई।