Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधक्ला सहिदे कसायपाहुडे
[ बेदगो
सन्त्रस्थोवा अवत्त । श्रसंखे० ' गुणहाणि० संखे० गुणा । सेसं तं चैव । १८४८. देवाणं पंचिदतिरिक्तभोगीतिकथने ०पुरिसवे० श्रवत्त पत्थि । एवं भवण० वाणर्चे० - जोदिसि० । सोहम्मीसाल ० विदियढत्रिभंगो | वरि इस्थिवे० - पुरिसवेद० कसायभंगो । श्रवत्त० णत्थि । स० [पस्थि । एवं सनकुमारादि जाव सहस्सारा ति । वरि इत्थवेदो पत्थि । ९८४९, आणदादि नवमेवजाति मिच्छ० सव्वथोत्रा असंखे० गुणहाणि० 1 संखे - भागहारिण० संखे ० ० गुणा । वत्त० श्रसंखे० गुणा । श्रसंखे ० भागहा० श्रसंखे० गुणा । सम्म० सव्वत्थोवा श्रसंखे० भागवडि० | संखे० गुणवडि० श्रसंखे० गुणा । संखे० भागवडि० संखे० गुणा । संखे० भागहाणि० श्रसंखे० गुणा । श्रवत्त० श्रसंखे० गुणा | श्रसंखे० भागहाणि० असंखे० गुणा । सम्मामि० सव्वत्थोवा श्रवत्त० । असंखे ० भाग हा ० असंखे० गुणा । सोलसक० छण्णोक० सम्वत्थोवा संखे ० भागहारिण० | अवत्त० श्रसंखे० गुणा | असंखे० भागहाणि० असंखे० गुणा । एवं पुरिस० | दरि अवत्त० णत्थि । वेद नहीं है। इनमें स्त्रीवेदक अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यात गुणहानि स्थिति उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। शेष उसी प्रकार है ।
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१४. देवों में पंचेन्द्रिय तिर्यश्वों के समान भंग है। इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेद नहीं है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है । इसीप्रकार भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिपी देवोंमें जानना चाहिए। सौधर्म और ऐशान कल्पमें दूसरी पृथिवीके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भंग कषाय के समान है। इनकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है । नपुंसकवेद नहीं है । इसीप्रकार सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार कल्पतक के देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद नहीं है ।
९८४८. श्रान्त कल्पसे लेकर नौ मैत्रेयकतकके देवोंमें मिध्यात्वकी असंख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे संख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अवक्तव्य स्थितिक उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे श्रसंख्यात भागहानि स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्वकी असंख्यात भागवृद्धि स्थिति के उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे संख्यात गुणवृद्धि स्थितिके उदीरक जीव संस्थान गुणे हैं । उनसे संख्यात भागवृद्धि स्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात भागहानि स्थिति के उदीरक जीव श्रसंख्यातगुण हैं। उनसे अवक्तव्य स्थिति के उदारक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात भागदानि स्थितिके उदीरक जीव श्रसंख्यातगुणे दें। सम्यग्मिध्यात्व की
वक्तव्य स्थितिके उदरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यात भागद्दानि स्थितिके उदोरक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं। सोलह कपाय और छह नोकपायकी संख्यात भागहानि स्थिति उदीरक जीव सबसे स्वोक हैं। उनसे अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । उनसे असंख्यात भागद्दानि स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार पुरुषवेद की अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी व्यवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है ।
१ भा०प्रतौ संखे इति पाठः ।