Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 395
________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज जयधत्रलासहिदे कसायपाहुडे ३८२ [ वेदगो ७ O 91 ६८२२. सणकुमारादि सहस्सार ति सच्चपयडी० सञ्चपदा० के० फोसिद ? लोग असंखे० भागो चोस० । आसदादि अच्चुदाति सव्यपयडि० सव्त्रपद० केव० पोसिदं ? लोग० श्रसंखे- भागो छचोदस० । उवरि खेत्तभंगो। एवं जाव० । ९८२३. काला० दुविहो णि० - प्रघेण आदेसेण य । श्रघेण मिच्छ० असंखे० भागवड्ढि - हाणि अवद्वि० केवचिरं सव्वद्धा । सेसपद० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । एवं स० । णवर असंखे० गुणहाणि० जह० एम०, उक्क० संखेजा समया । एवं च संजल० । णरि अवत्त० सव्वद्धा । श्रसंखे ० गुणत्रडि ० जह० एयस०, उक्क० संखेज्जा समया । एवं बारसक० कृण्णोक० | णवरि असंखे ०गुणवड- हाणि० णत्थि । सम्म० श्रसंखे ० भागहाणि सब्वद्धा । सेमपदा० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । असंखे० गुणहारिण० जह० एस० उक० संखेज्जा समया । सम्मामि० असंखे० भागहा ० जह० अंतोमु०, उक्क० पलिदो० श्रसंखे० भागो । सपदा० जह० एस० क० आवलि० असंखे० भागो । इत्थवेद J 1 ३८२२. सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार वल्पतक के देवों में सब प्रकृतियोंके सब पदों की स्थिति प्रदीरकांने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागों से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आनतकल्प से लेकर अच्युत कल्पतकके देवामें सब प्रकृतियोंके सब पदोंकी स्थिति के उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भाग में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ऊपर स्पर्शन क्षेत्र के समान है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। ६८२३. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश | ओघसे मिथ्यात्व की असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिके उदीरकों का कितना काल हैं । सर्वदा काल है। शेष पदकी स्थिति के उदीरकों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरकों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। इसीप्रकार चार लोकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा हैं । असंख्यात गुणवृद्धि स्थिति उदीरकों का जयन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । इसीप्रकार बारह कषाय और छह नोकपायों की अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात गुगुहानि स्थितिउदीरणा नहीं है। सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थिति के उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पदों की स्थिति के उदीरकॉका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण है । असंख्यात गुणानि स्थितिके उदीरकों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । सम्यरिमध्यात्व की असंख्यात भागहानिको स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्के असंख्यात भागप्रमाण है । शेष पदों की स्थिति के उरका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आबलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है।

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