Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलासहिद कसायपाहुढे
[वेदगो. उक० संखेला समया | सम्मामि० असंखे०भागहा. जह० उक्क० अंतोमु० । सेसपदा० जह. एगस०, उक्क० संग्वेखा समया। सोलसक. पणोक. पंचिदियतिरिक्खभंगो । णबरि चदुसंज. असंखेञगुणहाणि ओषं ।
८२७. मणुसपज्जा-मणुसिणीसु सव्यपयडी. असंखे०भागहाणि-अघटि. सम्बद्धा । सेसपदा० जह० एयस०, उक्क० संखेज्जा समया । णकार सम्म०-सम्मामि० मणुसोघं । मणुसअपज्ज० सयपयडी० असंखे०भागहाणि-अवहिः जह० एगस०, पलिदो० असंखे भागो । सेसपदा० जह० एगस०, उक्क० श्रावलि. असंखे०भागो।
१८२८. रणदादि जाव रणवगेवाजा ति मिच्छत्त-सम्म०-सोलमक.. सत्तणोक० असंखे भागहाणि० सव्यद्धा । सेमपदा० जह० एगस०, उक० आबलिक असंखे०भागो । सम्मामि० असंखे०भागहाणि-अवत्त० ओघं।
८२९. अणुदिमादि सबट्ठा त्ति सव्यपडि० असंखे० भागहाणि सम्बद्धा । सेसपदा० जद्द० एगस०, उक० आवलि. असंखे०भागो । गरि सम्म० अवत्त जह० एयस०, उक० संखेज्जा समया। गवारि सबढे संखेज्जममया कादया । संख्यात समय है। सम्यग्मिध्यात्यकी असंख्यात भागहानि स्थिति के उदीरकों का जघन्य और उत्कृष्ट मालिशव-तमुहसाव शेष पदको स्थितिक उदारकाका जघन्य काल एक समय है और उत्मय काल संख्यात समय है। सोलह कषाय और छह नोकषायका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चोंके .. समान है। इसनी विशेषता है कि चार संचलनकी असंख्यात गुणहानि स्थिति के उदीरकोंका . भंग श्रोघके समान है।
१८२७. मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनिया में सब प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थिति के उदीरकोंका काल सबंदा है। शेष पदोंकी स्थिति के अदीरकाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृए काल संख्यात समय है। इननी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग सामान्य मनुष्योंके समान है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थिति के उारकोका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यात भागप्रमाण है। शेष पदों की स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है. और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवे भागप्रमाण है।
६८२८. मानतकल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयकतकके देवोंमें मिथ्याल, सम्यक्त्व, सोलह कपाय और सात नोकषायकी असंख्यात भागहानि स्थितिके उदोरकाका काल सर्पदा है। शेष पदोफी स्थित्तिके दीरकाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल प्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यग्मिध्यात्वकी असंख्यात भागहानि और प्रवक्तव्य स्थितिके उदीरफोंका भंग ओघके समान है।
१८२६. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सब प्रकृतियों को असंख्यात भागहानि स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पदों की स्थिति के उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल मावलिके असंख्यात भागप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व की प्रवक्तव्य स्थितिके उदीरकोका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। इतनी विशेषता है कि सत्रार्थसिद्धिमें बावलिके असंख्यासर्वे भागके स्थानमें