Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 388
________________ गा० ६२ ] उत्तर पर्याडट्टिदि उदीरणाए वडिट्टि दिउदी राणि गारं ३७५ अस्थि । सेसपदा भयणिञ्जा सम्म असंखे ० भागहाणिः णियमा अस्थि । सेसपदा मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज भणिजा । सम्मामि० सच्चपदा भयणिका । इत्थवेद- पुरिसवेद असं भागिहाि वडि० नियमा अस्थि । सेसपदाणि भयणिञ्जारिण । एवं तिरिक्खा ० । १८०८. देसेण रइय० मिच्छ० - सोलसक० सत्तणोक० श्रसंखे० भागझणि० शियमा अस्थि । सेसपदा भयशिज्जा | सम्म० सम्मामि० सच्चपदारण मोघं । एवं सव्वरय सव्वपचिदियतिरिक्ख-मरणुसतिय देवा भवणादि जाव सहस्सार ति सव्वथडीणमसंखे० भागहारिण अवडि० शियमा अस्थि । सेसपदा भयखिखा । णवरि सम्म० - सम्मामि० श्रधं । मपुसअप सन्त्रपयडी० सच्च० भयणिञ्जा । १८०९. आणदादि णवगेवजा चि सव्वपय० असंखे० भागहाणि० नियमा श्रत्थि । सपदा भणिञ्जा । वरि सम्मामि० सव्वपदाणि भयणिजाणि । अणुद्दिसादि सव्वा चि सव्यपयडी० असंखे० भागहाणि० णियमा अत्थि । सेसपदा० भयणिज्जा । एवं जाव० । ६८१०. भागाभागाणु० दुविहो णि० - ओधेर श्रादेसेण य । श्रोषेण मिच्छ० एस० असंखे० भागवडिउदी० सम्पजी० के० ? असंखे० भागो । असंखे० - श्रीर छह नोकषायकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नियमसे है । शेष पद भजनीय है। सम्यक्त्वकी असंख्यात भागद्दानि स्थितिउदीरणा नियमसे है। शेष पद भजनीय हैं। सम्यग्मिध्यात्वके सब पद भजनीय हैं। स्त्रीवेद और पुरुषवेदी असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिउदीरणा नियमसे है । शेष पद भजनीय हैं। इसीप्रकार तिर्यों में जानना चाहिए । १८०८ आदेश से नारकियों में मिथ्यात्व, सोलह कषाय और खात नोकषायकी असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिउदीरणा नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। सम्यक्ता और सम्यग्मिथ्यात्व के स्रम पदोंका भंग ओघ के समान हैं । इसीप्रकार सब नारकियों में जानना चाहिए | सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्यत्रिक, सामान्य देव तथा भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतके देवोंमें सब प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिउदीरणां नियमसे है। शेष पद भजनीय हैं। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व सम्यग्मिध्यात्वका भंग श्रोघके समान है । मनुष्य अपर्याप्तकों में सब प्रकृतियोंके सब पद भजनीय हैं। ९८०६. आजतकल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयकतकके देवामं सब प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणा नियमसे है। शेष पद भजनीय हैं। इतनी विशेषता है कि सम्यग्निध्यात्व के सब पढ़ भजनीय हैं। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सब प्रकृतियों की असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणा नियमसे है । शेष पद भजनीय हैं। इसीप्रकार अनाहारक मार्गात जानना चाहिए। 1 ३८१०. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— श्रोत्र और आदेश । श्रोषसे मिध्यात्व और नपुंसकवेदकी असंख्यात भागवृद्धि स्थितिके उीरक जीव सब जीवोंके कितने

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