Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२] उत्तरपयडिद्विदिउदीरणाए बढिहिषिउदीरणाणिप्रोगहार दोहाणि० जह० अंनोमु०, उक० श्रद्वारस सागरो० सादिरेयाणि । असंखे० भामहाणिअवत्त० जह• एयस० अंतोमु०, उक्क० एकत्तीसं सागरो० देमूणारिख । इत्थिवेद० असंखे०भागवडि-अववि० जह० एयस०, दोवडि-हाणि. जह० अंतोमु०, उक. सम्वेसि पणवण्णं पलिदो० देसूणाणि । असंखे०भागहाणि० जह० एयस०, उक० अंतोमु०। पुरिसवेद० भय-दुगुंछभंगो। गरि अवत्तब्य० णस्थि । एवं मवणादि जाव सहस्सारा त्ति । णबरि सगहिदीओ । हस्स-रदि-अरदि-सोग० भयमंगो । बरि सहस्सारे हस्स-रदि-अरदि-सोग० असंखे० भागहाणि-अवस० देवोघं । गवरि भवणबाण-जोदिसि० इथिवे. असंखे०भागवड्डि-अवढि जह० एयस०, दोवल्डि-हाणि. जह अंतोमु०, उक० सव्वेसि तिणि पलिदो० देसूरणाणि पलिदो. सादिरेयाणि पलि. सादिरे । असंखे० भागहाणि जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । सोहम्मीसाणे इस्थिवेद. देवोघं । उवरि इस्थिवेदो णस्यि ।
८०५. आणदादि जाव एवगेवजा ति मिच्छ० असंखे०भागहाणि जह एपस०, सहमनिहारिणनवर्स छीजाविनितीमुजी असख गुणहाणि जह० पलिदो०
और सबका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम इकतीस सागर है। संख्यात गुणहानि और अवस्थित स्थितिउदीरणाका तथा सम्यग्मिण्यात्यकी दो हानि स्थितिउदीरणाका जघन्य भन्सर अन्तर्मुहूर्स है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक अठारह सागर है । असंख्यात भागहानि और श्रवक्तव्य स्थितिदीरणाका जयन्य अन्तर एक समय और अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम इकसीस सागर है। स्त्रीवेदकी असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थित स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है, दो वृद्धि और दो हानि स्थितिउदीरणाका जवन्य अन्तर मन्तमुहूर्त है तथा सबका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचवन पल्य है। असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। पुरुषवेदका भंग भय और जुगुप्साके समान है। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य स्थितिबदीरणा नहीं है। इसीप्रकार भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार फल्पतकके देवा में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। हास्य, रति, अरति और शोकका भंग भयके समान है। इतनी विशेषता है कि सहस्रार कल्पमें हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यात भागहानि और भवक्तव्य स्थिति उदीरणाका भंग सामान्य देवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि भवनवासी, व्यन्सर और ज्योतिषी देवों में स्त्रीवेदकी असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थित स्थितिउदीरणाका जवन्य अन्तर एक समय है, दो वृद्धि और दो हानि स्थिति उदारणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य, साधिक एक पल्य और साधिक एक पल्यप्रमारण है। असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्दर अन्तर्मुहूर्त है। सौधर्म और ऐशानकल्पमें स्त्रीवेदका भंग सामान्य देवोंके समान है। भागे स्त्रीवेद नहीं है।
Sear, आनतकल्पसे लेकर नौ येथेयकतकके देवोंमें मिथ्यात्वकी पसंख्यात भागहानि स्थितिब्दीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है, संख्यात भागहानि और अवक्तव्य स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है, असंख्यात गुणहानि स्थितिउदारणाका जघन्य अन्तर