Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 384
________________ 1. गा० ६२ ] अन्तरपयडिडिदिउदीरणाए बडिदिउदी राखियो गद्दारं ३७१ अंतोमु०, उक्क० पुव्यको डिपुधत्तं । गवारे पञ्जत्त० - इत्थिवेदो णत्थि । जोणिणीसु पुरिस० स०स्थि । इत्थवे० श्रवत्तव्यं पि णत्थि । असंखे० भागहाणि० जह० एयसमत्रो, उक्क० अंतोमु० । 0 ८०२. पंचिदियतिरिक्ख पञ्ज० - मणुस अपज० मिच्छ० - सोलसक० सत्तणोक० श्रसंखे० भागवड्डि हाणि संखेज गुणवड्डि- अडि० जह० एम० उक० अंतोमु० । अंतीमु० । १ पदाणं जहर o , I ३८०३. मणुसेसु मिच्छ० श्रसंखे० भागचड्डि-संखेजगुणवष्डि यत्रडि० जह० एस० संखे० भागवढि संखे० गुणहाणि० जह० अंतोमु०, उक्क० मच्चेसिं पुञ्चकोडी देणा । सपदाणं पंचिदियतिरिक्तभंगो | सूत्रमता०४ । णवरि असंखे० गुणहाणि स्थिश्राचादातर मटुक । वरि असंखे० भागहा०अत्रत्त० श्रोषं । एवं चदुसंजलण० छण्णोक | रावर असंखे० भागवडि-वडि० जह० एयस, उक्क० अंतोमुहूर्त्त । वरि चदुमंज० असंखे० गुणहाणि० जह० अंतोमु०, 2 • नपुंसक वेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि संख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है। तथा योनिनियोंमें पुरुपवेद और नपुंसकवेद नहीं है । तथा योगिनियों में स्त्रीवेदकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणा भी नहीं है। असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । ९८०२. पचेन्द्रिय तिर्यद्ध अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिथ्यात्व, सोलह कषाय और साव तोकषायकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागद्दानि संख्यात गुणवृद्धि और अवस्थित स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । शेष पदोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । ६८०३. मनुष्यों में मिध्यात्व असंख्यात भागवृद्धि, संख्यात गुणवृद्धि और अवस्थित स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है, संख्यात भागवृद्धि और संख्यात गुणहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। शेष पदोंका भंग पश्चेन्द्रिय तिर्यखों के समान है । इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यात गुणहानि स्थितिउदीरणा नहीं है | अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका भंग पश्चेन्द्रिय तिर्थयोंके समान है । इसीप्रकार आठ कषायकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागहानि और अवक्तव्य स्थितिरका भंग ओघके समान है । इसीप्रकार चार संज्वलन और छह नोकषायकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थित स्थिति - उदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इतनी विशेषता है कि चार संज्वलनकी असंख्यात गुणहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और १ श्र०प्रसौ लोक० 1 श्रसंखेभागवति जह० इति पाठः । 10

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